भजन =लाल छोटा मेरा आज कान्हा
जन्म मथुरा लिए – आज कान्हा ,
डर सताने लगा है – पिता को
आततायी है मथुरा का राजा ,
लाल छोटा मेरा आज कान्हा
सुन पिता की व्यथा
कृष्ण मुस्कुरा रहे
बेड़ियाँ खुल गयी,
द्वार खुलने लगे
द्वारपालों ने निद्रा का – शोषण किया
आज निद्रा उन्हे जब -सुलाने लगी
क्षीर सागर से आए – मेरे श्याम हैं,
दुखी मातु पितु -दुख — मिटाने लगे
भाद्रपद अष्टमी थी
घटा घोर काली ,
उफनती थी यमुना
सजी रवि की लाली
शेष रक्षा करें जल वृष्टि से कैसे –
उठा फन कहे नाथ पलकों में जैसे
निशा में खुशी रवि की तनया हुई
छू चरण नाथ घटनेयमुना लगी
टोकरी [सूप] सर पे रख कर गोकुल चले,
नंद बाबा की बखरी दिखाने लगी
घोर निद्रा यशोदा थी सोयी हुई
जन्म लाली को उसने दिया था अभी
योगमाया लिए कृष्ण को छोड़कर
चल पड़े फिर कदम आज मथुरा नगर
जन्म मथुरा लिए – आज कान्हा ,
डर सताने लगा है – पिता को
आततायी है मथुरा का राजा ,
लाल छोटा मेरा आज कान्हा
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी
२४/०८/२०१६
प्रिय राजकिशोर भाई जी, अति सुंदर. एक सटीक एवं सार्थक रचना के लिए आभार.
बहन जी प्रणाम स्नेह के लिए आभार
प्रिय राजकिशोर भाई जी, अति सुंदर. एक सटीक एवं सार्थक रचना के लिए आभार.