ज़िन्दगी भर बस यही नादाँनियाँ करता रहा
जिन्दगी भर बस यही नादाँनियाँ करता रहा।
आदमी रिश्तो में भी बेईमानियाँ करता रहा॥
जान कर भी सच को उसने सच कभी बोला नही।
नाम पर बस धर्म के शैतानियाँ करता रहा॥
राह में बस खार बोये जिन्दगी भर दोस्तो।
जिद सदा करता रहा मनमानियाँ करता रहा॥
मिल गयी दौलत उसे सम्मान भी पाया बहुत।
जो सदा ही देश जन की हानियाँ करता रहा॥
अंत उसके हाथ आया क्या बताओ दोस्तो।
जो वतन के वास्ते कुर्बानियाँ करता रहा॥
जब किया है आदमी ने सिर्फ बेजा ही किया।
ज़िन्दगानी में फ़कत वीरानियाँ करता रहा॥
फितरतों से बाज आयेगा कभी लगता नही।
वो सदा से ही खडी परशानियाँ करता रहा॥
सतीश बंसल