कविता : माई
है धन्यवाद उस पत्थर को
जिससे पाँवों ने चोट खायी हैं
हृदय में तीखा दर्द उमड़ा है
आँखों से बूँदे छलछलाई हैं.
हमने कोशिश बहुत की थी
हम अपना मुख न खोलेंगे
फिर भी होठों ने पुकारा है
कहाँ पर ओ मेरी माई है.
दर्द कितना भी गहरा हो
वो हल्का सा फूँक देती थी
उसकी उस फूँक के जैसी
बनी अबतक न कोई दवाई है.
है धन्यवाद उस पत्थर को
जिससे पाँवों ने चोट खायी हैं…..
— विशाल नारायण
बढ़िया !
धन्यवाद आदरणीय
बढ़िया !
प्रिय विशाल भाई जी, आज भी माई की फूंक जैसी कारगर कोई दवाई नहीं. एक सटीक व सार्थक रचना के लिए आभार.
सादर नमन आदरणीया