कविता

कविता : माई

है धन्यवाद उस पत्थर को
जिससे पाँवों ने चोट खायी हैं
हृदय में तीखा दर्द उमड़ा है
आँखों से बूँदे छलछलाई हैं.

हमने कोशिश बहुत की थी
हम अपना मुख न खोलेंगे
फिर भी होठों ने पुकारा है
कहाँ पर ओ मेरी माई है.

दर्द कितना भी गहरा हो
वो हल्का सा फूँक देती थी
उसकी उस फूँक के जैसी
बनी अबतक न कोई दवाई है.

है धन्यवाद उस पत्थर को
जिससे पाँवों ने चोट खायी हैं…..

— विशाल नारायण

विशाल नारायण

नाम:- विशाल नारायण , पिता:- बीरेन्द्र कुमार सिंह, ग्राम:- सखुआँ, जिला:- रोहतास, बिहार सम्प्रती गोवा में पदस्थापित. विशाल नारायण वास्को गोवा. 9561266303

5 thoughts on “कविता : माई

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

    • विशाल नारायण

      धन्यवाद आदरणीय

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

  • लीला तिवानी

    प्रिय विशाल भाई जी, आज भी माई की फूंक जैसी कारगर कोई दवाई नहीं. एक सटीक व सार्थक रचना के लिए आभार.

    • विशाल नारायण

      सादर नमन आदरणीया

Comments are closed.