गीतिका
भावना भी धवल रही होगी |
साधना तब ये फल रही होगी |
कार्य कारण पता नहीं मुझको
जिन्दगी आप छल रही होगी |
कर्म रत हो मिली तुझे मंजिल
रब दुआ कुछ फजल रही होगी |
दुख सभी का समझ रहे अपना
फिर वो दुनिया सरल रही होगी |
खुद खड़े तप रहे शजर जैसे
उनकी’ नीयत तरल रही होगी |
पाहनों में दबा सुखी जीवन
आसुरी सी पहल रही होगी |
“छाया”
अच्छी ग़ज़ल !
अच्छी ग़ज़ल !