कविता : सुनो न कभी तुम भी…
सुनो न कभी तुम भी
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सुनो न कभी तुम भी
खामोशियों को मेरी !
खामोश रह कर भी ये
दिलों के राज़ खोलती हैं !!
पढ़ो न कभी तुम भी
आँखों की इस जुबां को !
दुनिया की भीड़ में भी
तुझको ही खोजती हैं !!
जानो न कभी तुम भी
छुपी मेरे मन की पीड़ा !
तेरी ख़ुशी की खातिर
सारी रस्में तोड़ती हैं !!
कभी मन से सुनो,
खामोशियों को मेरी !
खामोश रह कर भी ये
बहुत कुछ बोलती हैं !!
अंजु गुप्ता