जिंदगी
कभी खुशी कभी गम ऐसा दस्तूर है जिंदगी
कहीं भूखी कहीं लुटती ऐसी मजबूर है जिंदगी
पैसा और राजनिति हो तो जन्नत की हूर है जिंदगी
बड़े-बड़े मकानों में रहे अगर तो गुरूर है जिंदगी
डूबे कश्ती गरीब की जब तो बड़ी दूर है जिंदगी
पसीना-पसीना टपते जब मेहनत तो मजदूर है जिंदगी
सत्ता जब हो हाथों में किसी के तो हुजूर है जिंदगी
साथ छोड़ दे पल भर में किसी का भी इतनी मगरूर है जिंदगी
असंख्य आवाजों का मेल है तो नुपुर है जिंदगी
तुम हो और मैं हूँ पास-पास तो जरूर है जिंदगी
— परवीन माटी