कविता

जिंदगी

कभी खुशी कभी गम ऐसा दस्तूर है जिंदगी
कहीं भूखी कहीं लुटती ऐसी मजबूर है जिंदगी
पैसा और राजनिति हो तो जन्नत की हूर है जिंदगी
बड़े-बड़े मकानों में रहे अगर तो गुरूर है जिंदगी
डूबे कश्ती गरीब की जब तो बड़ी दूर है जिंदगी
पसीना-पसीना टपते जब मेहनत तो मजदूर है जिंदगी
सत्ता जब हो हाथों में किसी के तो हुजूर है जिंदगी
साथ छोड़ दे पल भर में किसी का भी इतनी मगरूर है जिंदगी
असंख्य आवाजों का मेल है तो नुपुर है जिंदगी
तुम हो और मैं हूँ पास-पास तो जरूर है जिंदगी

परवीन माटी

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733