दादी का दर्द
दादी दादी… कहता छोटा सा कृत्तिन भागता हुआ दादी के गले लगकर बोला दादी आप जल्दी से तैयार हो जाओ डाक्टर के पास जाना है। दादी को बहुत दर्द था पेट में, दादी जानती थी कि पता नहीं डाक्टर क्या करेंगे कोई सुई लगा देगा कोई कुछ कहेगा कहीं अस्पताल न भर्ती कर लें। वह रोते हुए कृत्तिन से बोली तुम क्या चाहते हो मैं डाक्टर को दिखाने जाऊं या घर पर ही कोई इलाज कर के देखूं ? पापा नहीं मानेंगे दादी और दर्द बड़ गया तो। सात साल का कृत्तिन मासुमियत से बोला! पर दादीको डाक्टर से बहुत डर लगता था और बेटे से भी क्योंकि वो नहीं समझता था कि मां अस्पताल में भर्ती होकर अपने परिवार से दूर होकर पहले से भी ज्यादा बीमार हो जाएगी। पर बेटे को लगता था कि मां घर बैठकर अपने घरेलु नुस्खे अपना कर बीमार हो जाएंगी तो उनको ज्यादा तकलीफ होगी। उनको पता था जिस तरह से उनको दर्द उठ रहा था और पहले से पत्थरी की भी शिकायत थी पर वो आपरेशन के लिए नहीं मानती थी, डाक्टर अस्पताल में भर्ती होने की सलाह देगा फिर इंजक्शन और टैस्ट कराने का सिससिला शुरू होगा जिसका दर्द उस दर्द से कहीं ज्यादा होगा।अपने परिवार से दूर होने का दर्द भी होगा साथ ही बच्चों को परेशान होकर इधर उधर भागते देखने का दर्द, कृत्तिन की मीठी बाते न सुन पाने का दर्द। वो दर्द इस पेट दर्द से कहीं बड़कर थे। कहीं औपरेशन की नौबत न आ जाए क्योंकि पत्थरी की भी शिकायत थी। दादी इन सब से बचने के लिए डाक्टर के पास नहीं जाना चाहती थी पर कृत्तिन को लगता था कि पापा डाक्टर के पास ले जाएं,दादी ठीक हो जाएं। पर वो रो क्यों रही हैं और क्यों डाक्टर के पास जाने के लिए मना कर रही हैं यह वो नहीं समझ पा रहा था।
कामनी गुप्ता ***
हृदयस्पर्शी
धन्यवाद जी !
धन्यवाद जी !
अच्छी मार्मिक लघुकथा !
धन्यवाद सर जी !
धन्यवाद सर जी !
बचपन और बुढ़ापा एक सा रहता है इसीलिये दादी और पोते में अच्छी जमती है. बुढ़ापा स्वयं एक रोग है पर हरएक को इस दौर से गुजरना पड़ता है. अच्छा ताना बाना बुना है आपने एक लघुकथा के रूप में ..सादर!
धन्यवाद जी
धन्यवाद जी