कविता : बेटी
इक बगिया में
खिले दो फूल !
“बेटा” वारिस
“बेटी” पराई कहलाए
आखिर क्यों ??
जन्म ले बेटा
खुशियाँ मने !
बेटी होने पर
मातम छा जाए
आखिर क्यों ??
बेटे को सुविधा
ऐशो – आराम !
बेटी को बेड़ी में
है जकड़ा जाए
आखिर क्यों ??
कुल को रौशन
दोनों कर सकते !
बेटी को कमतर
फिर भी आंका जाए
आखिर क्यों ??
अंजु गुप्ता
सुन्दर भाव अंजू जी पर हम सभी को मिल्झुल कर ही इस समस्या का हल ढूँढना होगा ये भी जरूरी है की बेटी होने पर माँ और सासू माँ दोनों को खुश होना होगा तभी पुरुष मानसिकता मे भी बदलाव लाया जा सकता है
आपने सही कहा ! हम सभी को अपनी सोच में परिवर्तन लाना होगा ! बात माँ या सास की नहीं, बात सही सोच की है !
खुद को बदलेंगे, तो देश खुद बदलेगा !