कविता

कविता : बेटी


इक बगिया में
खिले दो फूल !
“बेटा” वारिस
“बेटी” पराई कहलाए
आखिर क्यों ??

जन्म ले बेटा
खुशियाँ मने !
बेटी होने पर
मातम छा जाए
आखिर क्यों ??

बेटे को सुविधा
ऐशो – आराम !
बेटी को बेड़ी में
है जकड़ा जाए
आखिर क्यों ??

कुल को रौशन
दोनों कर सकते !
बेटी को कमतर
फिर भी आंका जाए
आखिर क्यों ??

अंजु गुप्ता

*अंजु गुप्ता

Am Self Employed Soft Skill Trainer with more than 24 years of rich experience in Education field. Hindi is my passion & English is my profession. Qualification: B.Com, PGDMM, MBA, MA (English), B.Ed

2 thoughts on “कविता : बेटी

  • अर्जुन सिंह नेगी

    सुन्दर भाव अंजू जी पर हम सभी को मिल्झुल कर ही इस समस्या का हल ढूँढना होगा ये भी जरूरी है की बेटी होने पर माँ और सासू माँ दोनों को खुश होना होगा तभी पुरुष मानसिकता मे भी बदलाव लाया जा सकता है

    • अंजु गुप्ता

      आपने सही कहा ! हम सभी को अपनी सोच में परिवर्तन लाना होगा ! बात माँ या सास की नहीं, बात सही सोच की है !

      खुद को बदलेंगे, तो देश खुद बदलेगा !

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