संस्मरण

नभाटा ब्लॉग पर मेरे दो वर्ष – 17

नागर जी से पंगा लिया

मैं कड़ी 6 में संकेत कर चुका हूँ कि नवभारत टाइम्स (नभाटा) के प्रधान संपादक नीरेंद्र नागर ब्लोगरों को यह लालच दिया करते थे कि वे अच्छे ब्लोगरों को अपनी टीम में शामिल करेंगे. मैं इसी लालच में अच्छे से अच्छा लिखने की कोशिश करता था. पर जब कई महीने तक उन्होंने किसी भी ब्लोगर को अपनी टीम में शामिल नहीं किया तो मैंने उनको ईमेल भेजकर पूछा कि वे ऐसा क्यों नहीं कर रहे हैं और ब्लोगरों को चुनने की उनकी कसौटी क्या है? इसके उत्तर में उन्होंने बताया कि कोई कसौटी तय नहीं है. उन्होंने मुझसे ही कसौटी के बारे में सलाह मांगी, जो मैंने भेज दी.

पर जब कई महीने इंतज़ार करने के बाद भी कुछ नहीं हुआ तो मेरा धैर्य चुक गया और इस मामले पर मैंने नागर जी से पंगा लेना तय किया. मैंने अपने ब्लॉग पर एल लेख लिखा- “नागर और गंवार”. इसमें नागर जी के उस झांसे को उजागिर किया गया था जो वे लम्बे समय से ब्लोगरों को दे रहे थे. आप इस लेख को नीचे दिए गए लिंक पर पढ़ सकते हैं-

हास्य-व्यंग्य : ‘नागर’ और ‘गँवार’

http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/Khattha-Meetha/entry/%E0%A4%B9-%E0%A4%B8-%E0%A4%AF-%E0%A4%B5-%E0%A4%AF-%E0%A4%97-%E0%A4%AF-%E0%A4%A8-%E0%A4%97%E0%A4%B0-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%97-%E0%A4%B5-%E0%A4%B0

इस लेख के ब्लॉग पर छपते ही नागर जी आग बबूला हो गए होंगे. यह पहली बार हुआ था कि किसी ब्लोगर ने नभाटा के मंच पर ही उनकी धूर्तता को उजागिर किया. वे लेख को तो रोक नहीं सकते थे, क्योंकि मैंने कोई नियम नहीं तोडा था, पर उस लेख पर आये कमेंटों को रोकने लगे. वास्तव में नागर जी की तानाशाही के पीड़ित मैं अकेला नहीं था, बल्कि कई ब्लोगर इसके भुक्तभोगी रह चुके थे. वे सब अपना समर्थन देने के लिए मेरे लेख पर कमेंट कर रहे थे और नागर जी उनको रोक रहे थे. भुक्तभोगियों ने जमकर कमेंट करके अपने मन की भड़ास निकाली और नागर जी की छीछालेदर की.

जब मुझे पता चला कि कमेंट रोके जा रहे हैं तो मैंने इसका विरोध किया. तब कमेंट दोबारा मंगाए गए और लेख पर डाले गए. आप कमेंटों को पढ़कर देख सकते हैं कि किस तरह नागर जी स्वतंत्र लेखकों का उत्पीडन किया करते थे.

अपने ऊपर यह लेख और उस पर आये कमेंट पढ़कर नागर जी मुझसे भी बहुत नाराज हो गए. उन्होंने एक ईमेल यह कहते हुए भेजी कि “संपादक और लेखक के बीच का पत्रव्यवहार गोपनीय होता है और उसे प्रकट करके मैंने उनका विश्वास तोडा है.” मैंने उत्तर दिया कि “इसमें कुछ भी गोपनीय नहीं है और मैं उनका कोई कर्मचारी नहीं बल्कि स्वतंत्र लेखक हूँ. इसलिए मैंने कुछ गलत नहीं किया.”

इस उत्तर से नागर जी का समाधान हुआ या नहीं मुझे नहीं पता, लेकिन उसके बाद फिर मुझे उनका कोई ईमेल नहीं मिला.

— विजय कुमार सिंघल

भाद्रपद शु. 10, सं. 2073 वि. (12 सितम्बर 2016)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]