ग़ज़ल
बात करते है वो अक्सर ही वफादारी की |
साजिशें करते है जो लोग गददारी की ||
आजकल होंटो पे मुस्कान भी झूठी है |
बात दिल में है केवल आज लाचारी की ||
सामने आती है जब भी मुशीबत कोई |
फिर परख होती है अपने समझदारी की ||
झूठ लिख जाता सच आजकल रिश्वत में |
जीत होती है देखो आज अत्याचारी की ||
“हिन्द”कहता है अब देखो ज़माने का सच |
बात करता है हर कोई तरफदारी की ||
— बी.के. गुप्ता “हिन्द”