लघुकथा

लघुकथा : बाबा मेरे बच्चे कैसे हैं …..

“बाबा, मेरे बच्चे कैसे हैं ?”
“…………. ”
” बोलो बाबा ! हर बार मेरी कही अनसुनी कर देते हो …., अब तो बोलो !”
” ……………. ”
” बाबा ! ”
“……………………….”
” मैं क्या कहूँ पुत्री ।”
” क्यों नहीं कह सकते हैं ? तीन साल हो गए हैं ; अपने बच्चों से बिछुड़े हुए ….. ना जाने किस हाल में होंगे ।”
” देखो पुत्री यूँ रो कर मुझे द्रवित करने की कोशिश ना करो…”
” अच्छा ! तुम द्रवित भी होते हो ? लेकिन मेरे पास रोने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं है ! ”
” तुम खुद क्यों नहीं चली जाती….”
” मगर कैसे जाऊँ ….यहाँ मेरे पति भी तो है ? ”
” वह जा चुका है । नया जन्म ले चुका है । यह तुम ही हो जो यहाँ रुक गई हो …..”
” वह चला गया ?”
” हाँ ! ”
” वह पाषाण हृदय हो, शायद तुम्हारी तरह ही, चला गया होगा ; मैं नहीं जा पाईं ….मुझे मेरे बच्चों के अकेले पन के अहसास ने रोक लिया….मेरी आत्मा छटपटाहटा रही है! हम कितने उत्साह से तेरे दर्शन को आए थे ; अपने नन्हों की भी परवाह नहीं की ,और तुमने क्या किया ! ”
” मैं ने कुछ नहीं किया ….और तुम बार-बार यूँ मेरे सामने यह सवाल लेकर मत आया करो…. मैं पाषाण हृदय नहीं हूँ। हां, तुम मुझे पाषाणों में ही तलाशते हो। तुम्हें यहाँ आने की जरूरत भी क्या थी ? तुम्हारे कर्तव्य यहाँ आने से अधिक थे। ”
” वाह भोले बाबा ! सवाल तुम खड़ा करते हो और जवाब देते कतराते हो ? ”
” शांत पुत्री, क्रोध मत करो ! तुम्हें बच्चों के अकेले होने के अहसास ने नहीं बल्कि अपराधबोध ने रोक लिया है। ”
” बाबा , तुम्हारे रौद्र रूप के आगे मेरा क्रोध तो एक पागलपन है….विवशता है ।”
” मुझे तुम्हारे दुःख का अहसास है ….मगर मै क्या करूँ …..? यह सब विधि का विधान है…पहले से ही लिखा है….!”
“अच्छा ! फिर तुम्हारे मंदिर को कैसे बचा लिया तुमने ? ”
” …………..”
” मैं मंदिर में नहीं रहता पुत्री ! तुम्हारे हृदय में बसता हूँ… याद करो यात्रा से निकलने से पहले तुम्हारे हृदय में भी तो कुछ खटका था, क्या तुमने सुना था …।”
” आह ….मुझे अपने बच्चों के सिवा कुछ भी याद नहीं….ना जाने किसके सहारे होंगे…… ”
” उठो पुत्री ; अब तुम्हारे बच्चे तुम्हारे नहीं है …..दुःख करने से क्या होगा चली जाओ। उनका, तुम्हारा साथ तुम्हारे देह होने तक ही था। …..नई शुरुआत करो !”
” नहीं बाबा, यहाँ से जाने के लिए मुझे पत्थर होना पड़ेगा, भगवान बनना होगा और वह मैं नहीं हो सकती….क्योंकि मैं माँ हूँ ….यहीं रहूँगी…छटपटाती , तुमसे सवाल करती….कि मेरे बच्चे कैसे हैं ?”

उपासना सियाग

*उपासना सियाग

नाम -- उपासना सियाग पति का नाम -- श्री संजय सियाग जन्म -- 26 सितम्बर शिक्षा -- बी एस सी ( गृह विज्ञान ), महारानी कॉलेज , जयपुर ज्योतिष रत्न , आई ऍफ़ ए एस दिल्ली प्रकाशित रचनाएं --- 6 साँझा काव्य संग्रह, ज्योतिष पर लेख , कहानी और कवितायेँ विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती है।