इतना न लो इम्तिहान (एंटी ग़ज़ल)
इतना न लो इम्तिहान सब्र खो जाता है
के मुझे कभी कभी रोना भी आता है
खेल लगता है तुम्हे ये चन्द लम्हों का
मेरे लिए तो ये जन्मो का नाता है
एहसास है खूब अपनी गलती का मुझे
तभी तो नाचीज़ तुमसे नजरें चुराता है
तुम्हारे अंदाज़ को पिन्दार समझ बैठा
ये भूल करके दिल बहुत पछताता है
किस मुह से बोलें आज तुमसे हम
यही ख्याल अब शामो सहर सताता है
ना हम सही हुए, ना तुम गलत रहे
ये बात निहां इंतज़ार बताता है
तुमने भी न की तकल्लुफ समझाने की
यही दर्द मुझे रातों को जगाता है
कभी न दिल दुखायेंगे ओ’ना ही रूठेंगे
आज ये कसम अर्जुन उठाता है
अब तो बोलो वरना सब्र खो जाता है
के मुझे कभी कभी रोना भी आता है