कविता : गौ माता
गलियों में भटके चारे को,
कूड़ा – कचरा सब खाए !
माँ की तरह पाले सबको,
है गौ माता कहलाए !!
करदे देना जब बँद दुग्ध,
सड़कों पर छोड़ी जाए !
वेदों में थी जो पूज्य कभी,
अब लाठी से हांकी जाए !!
नियति देखो अब गौ-धन का,
किया जाए है निर्यात !
काट रहे इसको भक्षक बन के,
जो कहते थे इसे मात !!
— अंजु गुप्ता