कविता

वक़्त की पुकार

रक्त से सनी दिखी है सेवो की भी डालियाँ
भारती को दे रहे जो खुल्लेआम गालियाँ
क्यों हम खड़े डरे डरे
है मन से क्यों मरे मरे
उठा के शस्त्र , कह दो अब ना हम लाचार है
ये वक़्त की पुकार है ,ये वक़्त की पुकार। ………।

दोस्ती कि पाती उसको आई नहीं रास है
उसके घर को भेदने कि आई घड़ी पास है
न जाने हम क्यो मौन है
हमको कहेगा कौन है
स्शस्त्र वाहिनी भी तो खड़ी तैयार है
ये वक़्त की पुकार है ,ये वक़्त की पुकार। ………।

वो कर रहे हमारे देवो का भी अपमान है
नापाक पैरो से कुचलते माँ का सम्मान है
चमका दो माँ का भाल तुम
हो भारती के लाल तुम
उठो हे आर्य कर रहा तू क्या विचार है
ये वक़्त की पुकार है ,ये वक़्त की पुकार।

मुल्क को बचान है तो वीर सब बढे चलो
लक्ष्य हो की शत्रु पर इकट्ठे हो चढ़े चलो
क्यो रहे बँटे बँटे
स्वयं से भी कटे कटे
क्या जड़ से ही उखड़ने का इन्तेजार है
ये वक़्त की पुकार है ,ये वक़्त की पुकार।

मुल्क में जमा रहे वो अपनी जड़ को वर्षो से
सह मिल रही इमामो,मस्जिदो से व मदरसो से
प्रबुद्ध है हम बुद्ध है
है क्रुध तो फिर युद्ध है
क्यू भूले बैठे हम हमारा संस्कार है
ये वक़्त की पुकार है ,ये वक़्त की पुकार।

मनोज”मोजू”

मनोज डागा

निवासी इंदिरापुरम ,गाजियाबाद ,उ प्र, मूल निवासी , बीकानेर, राजस्थान , दिल्ली मे व्यवसाय करता हु ,व संयुक्त परिवार मे रहते हुए , दिल्ली भाजपा के संवाद प्रकोष्ठ ,का सदस्य हूँ। लिखना एक शौक के तौर पर शुरू किया है , व हिन्दुत्व व भारतीयता की अलख जगाने हेतु प्रयासरत हूँ.