समीक्षा – “अन्तस के बोल”
. श्री राम दीक्षित “आभास ” कृत “अन्तस के बोल” काव्य संग्रह पढ़ा !
युवा रचनाकार का यह प्रथम लेकिन गंभीर प्रयास है कहना अतिशियोक्ति नही होगा!
जहां आज युवा मंच की ओर पलायन करना चाहता है …रातो रात नामचीन बन जाना चाहता है, इस आपा धापी में वह वस्तुतः कविता से दूर हो केवल सस्ती तुकबंदी पर ही ध्यान लगाकर अपनी काव्य प्रतिभा को असमय नष्ट कर लेता है !
वहीं श्री आभास जैसे युवा साहित्य के प्रति सजग व कोमल भाव रखते हुए शनैः शनैः साहित्य को समृद्ध करने का सुकार्य भी कर रहे हैं !
काव्य संकलन अपनी कुछ कविताओं के लिए सदैव याद किया जाएगा ,यह मेरा मत है !
१.क्यूँ कोई जन कवि होता है?
पलता रहता अभाव में ,
सहनशीलता संचित स्वभाव में ,
कर आगे को बढ़ता है !!
२. यह पूछ रही है अंतर से,
थोडा सा हँस कर ऊपर से ,
कोई तो कह दे दिनकर से,
है कहां ह्रदय का उजियारा,
नयनो से बहती जलधारा !!
श्री आभास की कविताएं शिल्प , बिम्ब, प्रतीकों से सजी धजी है, भाषा पर कवि की अच्छी पकड़ उसे समकालीन कवियों में विशिष्ट बनाती है !
एक सार्थक काव्य ग्रंथ के लिए श्री आभास को कोटिशः बधाई देता हूँ !
बेबाक जौनपुरी