दोहे “रहा पाक ललकार”
बैरी है ललकारता, प्रतिदिन होकर क्रुद्ध।
हिम्मत है तो कीजिए, आकर उससे युद्ध।।
—
बन्दर घुड़की दे रहा, हो करके मग़रूर।
लेकिन शासक देश के, बने हुए मजबूर।।
—
गाँधी जी ने कब कहा, हो मिन्नत-फरियाद।
शठ को करवा दीजिए, दूध छठी का याद।।
—
पामर करवाता यहाँ, दंगे और फसाद।
करो अन्त नापाक का, दूर करो अवसाद।।
—
हाथ जोड़कर तो नहीं, हुआ देश आजाद।
क्रान्तिकारियों ने भरा, जन-गण में उन्माद।।
—
आजादी के बाद से, रहा पाक ललकार।
बदले में हम कर रहे, केवल सोच-विचार।।
—
आकाओं की भूल से, अब तक हैं बेचैन।
ऐसे करो उपाय अब, रहे चमन में चैन।।
—
हठधर्मी से ही हुआ, निर्मित पाकिस्तान।
झेल रहा इस दंश को, अब तक हिन्दुस्तान।।
—
बिगड़ा अब भी कुछ नहीं, बन्द करो अध्याय।
सही समय अब आ गया, सोचो ठोस उपाय।।
—
कदम-कदम पर जो सदा, करता है उत्पात।
उस बैरी से अब कभी, मत करना कुछ बात।।
—
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)