ग़ज़ल
बोल क्या मैं करूँ तुम्हारी ख़ुशी के लिए
शमां बनकर जलती हूँ रोशनी के लिए।
ये शिकायत नहीँ है दर्द ए दिल तो सुनो
क्या मेरा दिल है बस दिल्लगी के लिए।
तेरी खामोशी से सुन दिल ये ख़ामोश है
किसको इल्ज़ाम दूँ इस बेबसी के लिए ।
जाकर मय खाने में तुम बहक जाते हो
फिर वहाँ जाते हो क्यों मयकशी के लिए ।
तुम मिलो न मिलो पर हमसे कुछ तो कहो
बस इतना कफी है इस ज़िंदगी के लिए ।
मुझको मासूम कहकर तुम पुकारो न अब
क्या मिला है सिला सुन इस सादगी के लिए ।
तुम्हारे दर से गुजरती हूँ जानिब मैं जब
सर खुद ही झुक जाता है तेरी बंदगी के लिए ।
— ‘जानिब’