ग़ज़ल : आस करते रहे
हदों में रहकर भी, मन्जिल पाने की आस करते रहे,
बडे नासमझ थे, बेवफा से वफा की आस करते रहे।
समन्दर खारा.है, प्यास किसी की बुझा नही सकता,
बरसात के बाद उससे, मीठे पानी की आस करते रहे।
जानते थे उसकी फितरत, फकत धोखा देना ही थी,
धोखे खाकर भी न जाने क्यूँ, सुधरने की आस करते रहे।
छूने की चाह आसमां को गर, हौसलों की जरूरत होती है,
उतरेगा आसमां जमीं पर, ख्वाबों में आस करते रहे।
था बाजुओं में दम, जज्बा देश पर कुर्बान होने का,
लडते रहे-बढते रहे, अखण्ड भारत की आस करते रहे।
मिलेगा मान वीरों को, सहादत उनकी रंग लायेगी,
सीमा पर डटे सैनिक, वतन से यही आस करते रहे।
डॉ अ कीर्तिवर्धन