वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून का 5 दिवसीय शरदुत्सव कवि सम्मेलन के सफल आयोजन से आरम्भ
ओ३म्
वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के 5 दिवसीय शरदुत्सव से एक दिन पूर्व 4 अक्तूबर 2016 की रात्रि 8 बजे से 10.45 बजे तक एक कवि सम्मेलन का सफल आयोजन किया गया जिसमें देहरादून व निकटवर्ती स्थानों के उच्चस्तरीय कवियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का आरम्भ आर्यसमाज के भजनोपदेशक श्री रमेश चन्द्र स्नेही जी के भजनों से हुआ। उनकी पहली प्रस्तुति थी ‘प्रभु का भजन न किया जीवन गवां दिया। पापों का दमन न किया जीवन गंवा दिया।। जिन्दगी में ़जिन्दगी को जिन्दगी बनाने को, जिन्दगी की बगिया को फूलों से सजाने को, कुछ यत्न न किया, जीवन गवां दिया।।’ स्नेही जी का दूसरा भजन था ‘करता रहूं गुणगान मुझे दो ऐसा वरदान। तेरा नाम ही जपते–जपते, इस तन से निकले प्राण।। करता रहूं गुणगान …..।। शुभ कर्मों से हे ईश्वर मैंने ये नर तन पाया। विषय–वासनाओं में फंस कर अपने तन को व्यर्थ गंवाया।। पुनः भक्ति जगा दो मेरे दाता दया निधान।। करता रहूं गुणगाम मुझे दो ऐसा वरदान।।’
इन भजनों की प्रस्तुति के बाद ‘कवि सम्मेलन’ आरम्भ हो गया। सम्मेलन के आरम्भ में सभी कवियों का आर्यसमाज वा आश्रम के प्रमुख व्यक्तियों ने मालाओं, शाल आदि से अभिनन्दन किया। आर्य कवि श्री वीरेन्द्र राजपूत भी इस अवसर पर आमंत्रित थे जिन्हें मनमोहन आर्य द्वारा माल्यार्पण व शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। श्री वीरेन्द्र राजपूत के अनेक विषयों पर अनेक कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं। इसमें पं. गुरुदत्त विद्यार्थी तथा वीर बन्दा बैरागी की जीवनियां भी सम्मिलित हैं। सर्वाधिक प्रशंसनीय एवं महत्वपूर्ण कार्य आपने सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद का काव्यानुवाद कर किया है जो अनेक खण्डों में प्रकाशित हुआ है। जिन कवियों का अभिनन्दन किया गया उनके नाम हैं सर्वश्री अमर खरबन्दा जी, श्री कान्त शर्मा जी, श्री रोशन लाल हरयाणवी, श्री राम कुमार उपाध्याय, श्री वीरेन्द्र राजपूत जी, श्री सतीश संसल जी और श्री रामवीर राहगीर जी। कवि सम्मेलन का संचालन वरिष्ठ शायर वा कवि श्री अमर खरबन्दा जी ने बहुत ही योग्यतापूर्वक किया। सभी कवियों को आमंत्रित करने से पूर्व उन्होंने कवियों का अपने विशिष्ट अन्दाज में परिचय भी दिया। उन्होंने कहा कि ‘जो सोचता है उसे कवि कहा जा सकता है और जो सोचने पर दूसरों को मजबूर करता है, वह कवि होता है।‘ कवि सम्मेलन की पहली प्रस्तुति श्री कान्त शर्मा जी की थी जिन्होंने वीर रस में देश भक्ति की अनेक रचनायें बहुत प्रभावशाली अन्दाज व गायन की शैली में प्रस्तुत कीं जिससे सभी श्रोता भाव विभोर हो गये। उनका निशाना पाकिस्तान सहित देश के अन्दरुनी शत्रुओं पर भी था। श्रोताओं ने उनकी कविताओं पर बार-बार करतल ध्वनि कर सराहा। यह भी उल्लेखनीय है कि श्री कान्त शर्मा जी का निवास स्थान आर्यसमाज के निकट ही रहा और उन्होंने बचपन में साप्ताहिक रूप से आर्यसमाजिक विधि से यज्ञ आदि सम्पन्न किये हैं। अपनी कविताओं के बीच-बीच में उन्होंने महर्षि दयानन्द व स्वामी श्रद्धानन्द जी आदि को भी सम्मानपूर्वक याद किया। उनकी एक कविता की दो पंक्तियां थी ‘मैं गांव गांव और शहर शहर में डोल रहा हूं और भाषा इन्कलाब की बोल रहा हूं।‘ देश विरोधी नेताओं पर कटाक्ष करते हुए अपनी एक कविता की प्रमुख पंक्तियां थी ‘नस-2 में नफरतों का जहर भरते रहे हैं और देश तोड़ने की बात करते रहे हैं।’
अपनी टिप्पणी में कवि सम्मेलन के संचालक श्री अमर खरबन्दा जी ने एक घटना सुनाई। उन्होंने कहा कि एक कवि ने एक आयोजन में अपनी प्रभाशाली हास्य कविता सुनाई तो वहां उपस्थित सौ प्रतिशत लोग हंसे। उन्होंने उसी कविता को दोहराया तो हंसने वाले पचास प्रतिशत थे। तीसरी बार सुनाने पर पांच प्रतिशत हंसे और चैथी बार उसी कविता को सुनाने पर कोई नहीं हंसा। इस पर संचालक कवि महोदय ने कहा कि हंसने की बात पर हम बार बार हंस नहीं सकते तो रोने की बात पर भी आप जीवन भर रोते क्यों हैं?’
दूसरे कवि श्री रोशनलाल हरियाणवी जी ने हास्य कविताओं के द्वारा श्रोताओं का मनोरंजन किया। उन्होंने अनेक सामाजिक विषयों पर कटाक्ष भी किये। कश्मीर में संविधान की धारा 370 के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत उनकी एक कविता की पंक्तियां थी ‘जिसको कुछ नहीं मिला वह शरणार्थी बन गया और जिसको सब कुछ मिला वो आतंकवादी बन गया।’ आपने अपनी कविताओं में भारत के पाकिस्तान प्रेमियों पर भी अच्छे कटाक्ष किये। अगले कवि श्री राम कुमार उपाध्याय जी ने भी देश व समाज पर अनेक विधाओं की अपनी रचनाओं को प्रस्तुत किया। एक कविता की अन्तिम पंक्ति थी ‘पाक जैसे दुश्मनों का काल बन कर आ गया हूं।’ आर्य कवि वीरेन्द्र राजपूत जी ने अपनी कविता की प्रस्तुति से पूर्व शहीद माधव सिंह सोलंकी का उल्लेख किया। उनकी कविता के बोल थे ‘ऐ शहीदों की समाधियों को बनाने वालों, उनकी तस्वीर को लगा फूल चढ़ाने वालो। क्या बतायें तुम्हें बलिदान किसे कहते हैं।। घर की चिन्ता न रहे तन की चिन्ता न रहे, तब बतायें बलिदान किसे कहते हैं। जिस सुहागिन का पति हो गया बलिदान कभी। भूमि बंजर को वह उर्वरा बना देता है। एक बीज से सौ बीज बना देता है। ऐ शहीदों की शहादत को भुनाने वालों। याद में उनकी पांच दीप जलाने वालों। जिन्दगी भर भी कभी याद न किया देश को छलने वालों । क्या बतायें तुम्हें बलिदान किसे कहते हैं।।’
अगले कवि श्री सतीश बंसल थे। आपने अपनी कविता में राजनीतिज्ञों पर अच्छे व्यंग किये। उनके द्वारा प्रस्तुत कविता की पंक्तियां कुछ इस प्रकार थीं ‘ऐ सियासतदानों जरा लिहाज करो। धर्म के नाम पर लोगों को लड़ाया तुमने। तुमने कुर्सी के लिए बेचा है अपना ईमान सदा। भूख बीमारियां लाचारियां तुम्हें क्या पता? तुम तो दौलत के नशे में जहां को भूल गये। आग सिर्फ आग लगाते हो तुम। भाई से भाई को लड़ाते हो तुम। ऐ सियासत के दलालों जरा लिहाज करो।।’ इसके बाद श्री रामवीर राहगीर ने अपनी कविताओं को प्रस्तुत किया। उनकी कविता की कुछ पंक्तियां थी ‘अपने बल पर खड़े होना है। छोटे पेड़ छाया नहीं बनाते, बड़े पेड़ ही छाया बनाते हैं। राम नाम के पत्थर समुद्र में तैर जाते हैं।’ पाकिस्तान पर उनकी एक वीर रस की कविता की कुछ पंक्तियां थी ‘मौका मत देना दुश्मन को जहरीला दांत दिखाने में। आखिर सदियां लग जाती हैं बिगड़ी बात बनाने में। अच्छे दिन आयें हैं सम्भल कर चलना है। देखों पाखण्ड कभी न करना है। आजायें जब अच्छे दिन …. समय नहीं लगता है आखिर बुरे दिनों के आने में। शत्रु चाहे छोटा ही हो। कारगिल बन जाता है। लाल खपाने पड़ते हैं कितने, वतन की लाज बचाने को।‘ उनकी कविता की कुछ पंक्तियां यह भी थी ‘चोरी का एटम बम बना कर। सम्भला नहीं नापाक। चैन मिलेगी उस दिन जिस दिन मर मिटेगा इसे चलाने में।’
कवि सम्मेलन के अन्त में कवि श्री कान्त शर्मा जी ने संचालन कर रहे वरिष्ठ कवि श्री अमर खरबन्दा जी को भी अपनी रचनायें प्रस्तुत करने का अनुरोध किया। अपनी कविता में श्री खरबन्दा जी ने व्यंग करते हुए कविता में कहा कि ‘साठ साल तक लूटते रहे हो और अब पूछते हो – अच्छे दिन कब आयेंगे?’ एक कविता में उन्होंने कहा ‘अपने दिल की कभी न कहता हूं, उनकी हर बात सहता हूं। बेटे रहते थे घर में मेरे, अब मैं बेटों के घर पर रहता हूं।‘ एक कविता में उन्होंने गांधी जी के तीन बन्दरों पर भी उत्तम कटाक्ष किया। उनके इस कटाक्ष के कुछ शब्द इस प्रकार भी थे ‘अक्सर मुझको हैरानी होती है। एक ही बन्दर काफी था जो हमें यह शिक्षा देता कि बस बुरा मत किसी का करना’ आदि आदि।
रात्रि अधिक हो जाने पर कार्यक्रम को समाप्त करना पड़ा। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे तपोवन आश्रम के यशस्वी मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा ने सभी आमंत्रित कवियों का धन्यवाद किया और कार्यक्रम के समापन की घोषणा की। आज 5 अक्तूबर 2016 से प्रातः 5 बजे से आश्रम का शरदुत्सव आरम्भ हो गया है। प्रमुख आयोजनों में प्रातः योग साधना व ध्यान का प्रशिक्षण, वेद पारायण यज्ञ, आर्य भजनोपदेशक श्री कुलदीप आर्य के भजन, आर्य विद्वानों के प्रवचन आदि चलेंगे। अनेक सम्मेलन भी सम्पन्न होने के साथ शनिवार का दिन का सत्संग तपोवन की पहाड़ियों पर स्थित सुरम्य व शान्त साधन स्थली के शुद्ध व पवित्र वातावरण में होगा। बड़ी संख्या में लोग आश्रम में पधार चुकें हैं। ऐसे दुर्लभ सत्संग मनुष्य को सौभाग्य से ही मिलते हैं। आश्रम के प्रधान श्री दर्शन लाल अग्निहोत्री के प्रधानत्व में वैदिक साधन आश्रम प्रगति की ओर अग्रसर है। आचार्य आशीष दर्शनाचार्य स्थाई रूप से आश्रम में निवास करते हैं और समय समय पर अनेक शिविर आदि का आयोजन कर वैदिक विचारधारा के प्रचार व प्रसार का प्रशंसनीय कार्य करते हैं। आश्रम की ओर से एक मासिक पत्रिका ‘‘पवमान” का प्रकाशन भी किया जाता है जिसके मुख्य सम्पादक श्री कृष्ण कान्त वैदिक हैं। श्री कृष्ण कान्त जी एक वरिष्ठ सरकारी पद से सेवानिवृत अधिकारी हैं। संस्कृत में स्वर्णपदक सहित प्रथम श्रेणी में स्नात्कोत्तर की उपाधि प्राप्त हैं। अथर्व वेद पर आप शोध उपाधि हेतु अध्ययनरत है। इति।
–मनमोहन कुमार आर्य