लघुकथा

लघुकथा : दरकते रिश्ते

शरीर कई दिन से टाइफाइड से निढाल था। तेज ज्वर से तपती मैं पति के आने का इंतज़ार कर रही थी ।रात के एक बज चुका था पर उनका पता न था। फोन किया पर फोन उठा नहीं तो अनहोनी की आशंका से घबराहट होने लगी, एक-2 पल भारी गुज़र रहा था।13226718_540646672784253_5593281935986417848_n

लम्बे इंतज़ार के बाद दरवाजे पर दस्तक हुई , मानव को नशे में धुत देखकर मेरी परेशानी और बढ़ गई ।मुझसे रहा न गया तो बोली,” क्या मानव , तुम जानते हो न मेरी तबियत ठीक नहीं है और तेज बुखार भी है, तुम्हें ये सब नहीं करना…….”।मेरा बस बोलना था कि मानव के अंदर का मानव फूट पडा,” प्रीती तुमने क्या मुझे नौकर समझा है ,जो तुम्हारी सेवा करता रहूँगा, मेरी भी अपनी जिंदगी हैं, पहले मालूम होता कि तुम बीमार रहती हो तो शादी ही नहीं करता, तुमसे शादी करके जिदंगी नरक बन गई हैं। मुझे बख्श दो और चली जाओ”।

ये सब सुनकर आहत मन क्रंदन कर उठा, पर आवाज हलक में ही घुट के रह गई। आखों से बरसात होने लगी और मात्र दो महीने पूर्व हुई शादी में आई दरार साफ नजर आने लगी और बिस्तर पर मैं परकटे पंक्षी की तरह निढाल हो गिर गई।

संयोगिता शर्मा

संयोगिता शर्मा

जन्म स्थान- अलीगढ (उत्तर प्रदेश) शिक्षा- राजस्थान में(हिन्दी साहित्य में एम .ए) वर्तमान में इलाहाबाद में निवास रूचि- नये और पुराने गाने सुनना, साहित्यिक कथाएं पढना और साहित्यिक शहर इलाहाबाद में रहते हुए लेखन की शुरुआत करना।