ग़ज़ल
वक्त सबका हिसाब कर देगा,
जर्रे को आफताब कर देगा
फिरते हैं बने तवंगर जो,
उनका खाना-खराब कर देगा
सब्र कर आएगा वो लम्हा भी,
जो कली को गुलाब कर देगा
करवट बैठेगा ये जब सीधी,
मुफलिस को नवाब कर देगा
आज कसते हैं तुझपे ताने जो,
उनको कल लाजवाब कर देगा
लाख चेहरे लगा लें पर उनको,
एक दिन बेनकाब कर देगा
— भरत मल्होत्रा