गीतिका/ग़ज़ल

छोड़ दे

शब्दों को ऐसे बदलना छोड़ दे।
दर्द को यूं बेहद सहना छोड़ दे।

नाकाम हूँ यह बात न दिल से लगा ;
नाकाम खुद को बस कहना छोड़ दे।

ज़िन्दगी संघर्ष से है भरी पड़ी ;
हार मान कर यूं बैठना छोड़ दे।

मुसाफिर का काम तो बस चलना है ;
मंज़िल ना मिलेगी कहना छोड़ दे।

“कामनी” वक्त की बात है सब यही ;
गल्तफहमी खुद से रखना छोड़ दे।

कामनी गुप्ता ***
जम्मू !

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |