छोड़ दे
शब्दों को ऐसे बदलना छोड़ दे।
दर्द को यूं बेहद सहना छोड़ दे।
नाकाम हूँ यह बात न दिल से लगा ;
नाकाम खुद को बस कहना छोड़ दे।
ज़िन्दगी संघर्ष से है भरी पड़ी ;
हार मान कर यूं बैठना छोड़ दे।
मुसाफिर का काम तो बस चलना है ;
मंज़िल ना मिलेगी कहना छोड़ दे।
“कामनी” वक्त की बात है सब यही ;
गल्तफहमी खुद से रखना छोड़ दे।
कामनी गुप्ता ***
जम्मू !