बंध सात फेरों के बंधन में
बंध सात फेरों के बंधन में,
प्रिये तुम आई जीवन में,
अब तुम्हें कैसे छोड़ दूं बेसहारा।
सात जन्मों का रिश्ता अपना,
नहीं है कोई झूठा ये सपना,
अब तुमसे कैसे कर लूँ किनारा।
माता पिता का द्वार छोड़कर,
आई मेरे लिए तुम दौड़कर,
पल पल बीतेगा एक साथ हमारा।
सुख दुःख में बनी साझीदार,
झेली तन पर वक़्त की मार,
अब तुम्हें कैसे समझ लूँ बोझ भारा।
औलाद ने बेसहारा छोड़ दिया,
भरोसा एक पल में तोड़ दिया,
जुदा करेगी मौत हमें समझो इशारा।
नहीं चाहिए ऐसा आसरा मुझे,
जो करे जुदा एक पल को तुझे,
कोई नहीं इस जगत में तुमसे प्यारा।
जीवन के बाकी दिन भी गुजरेंगे,
रट कर प्रभु का नाम पार उतरेंगे,
सदा बने रहेंगे हम एक दूजे का सहारा।
प्यार कम नहीं होगा साँसे रुकने तक,
झुकने नहीं दूंगा खुद के झुकने तक,
चाहे दुश्मन बन जाए अपना संसार सारा।
जीवन में तुम हाथ ना छोड़ना मेरा,
सुलक्षणा एक दिन होगा नाम तेरा,
कलम की रौशनी करेगी जीवन में उजियारा।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत