गीतिका/ग़ज़ल

माँ

कितनी आशीष अपने आँचल से निकाल जाती है
कैसी भी मुसीबत हो, माँ संभाल जाती है।

मैं कितना भी मुस्कराने का नाटक कर लूँ
आँखों की उदासी माँ जान जाती है।

दोस्तों की सोहबत पर भी निगाहें है उनकी
मेरी आस्तीन के सांप माँ पहचान जाती है।

अथाह समन्दर में कोई सहारा नहीं दिखता
जब भी डूबने को होता हूँ, माँ थाम जाती है।

माँ की दुआ का असर इतना गहरा है
मेरे दुश्मनों की हर बद्दुआ नाकाम जाती है।

बेटों से एक माँ की सेवा नहीं होती,
औलादें कितनी भी हो, माँ पाल जाती है।

अपने आँसू कितनी मुश्किलों से संभालती होगी माँ
बड़ी होकर बेटियां जब ससुराल जाती है।

विनोद दवे

नाम = विनोदकुमारदवे परिचय = एक कविता संग्रह 'अच्छे दिनों के इंतज़ार में' सृजनलोक प्रकाशन से प्रकाशित। अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत। विनोद कुमार दवे 206 बड़ी ब्रह्मपुरी मुकाम पोस्ट=भाटून्द तहसील =बाली जिला= पाली राजस्थान 306707 मोबाइल=9166280718 ईमेल = [email protected]