जगमग सजी दिवाली
गहन अमावस में प्रकाश से गेह खिले हैं।
त्याग-तपस्या की बाती को स्नेह मिले हैं।
जगमग सजी दिवाली हर घर और आँगन में,
चमक रहीं है फुलझड़ियाँ सी नीलगगन में,
तम हरने को नन्हे-नन्हे दिये जले हैं।
आज गणपति और लक्ष्मी का अभिनन्दन होता है,
जोत जलाकर दोनों का ही पूजन-वन्दन होता है,
मईया माया दो! के उच्चारण निकले हैं।
धन-दौलत की चकाचौंध ने मेधा को बिसराया है,
नैतिकता को तजकर जग में पैसा खूब कमाया है,
वीणापाणि का आराधन करते विरले हैं।
— डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’