हृदय
विश्व हृदय दिवस (30 सितम्बर) पर एक रचना –
यों तो हर प्राणी में विशेष अंग है हृदय ,
पर मानव का हृदय
विशेष ही नहीं, खास है ।
सारा बोझ बेचारा
हृदय ही तो उठाता है ।
परिवार का बोझ,
कार्यालय का बोझ,
समाज का बोझ,
महंगाई का बोझ,
पत्नी की रूखाई का बोझ,
बच्चों की पढ़ाई का बोझ,
पड़ोसी की लड़ाई का बोझ,
पकोड़े की चिकनाई का बोझ,
कल्लू सेठ की मिठाई का बोझ,
अनेक बीमारियों की दवाई का बोझ,
और भी न जाने कितने बोझ
लिए यह घूमता है ।
जब थक जाता है
तो गुब्बारे के मानिंद
हवा निकल जाती है ।
सारे बोझ धराशाही हो जाते हैं ।
तो क्यों न इतने बोझ
ढोने वाले को –
कुछ आराम दिया जाए ।
सोच समझ कर
इस पर प्रयोग किए जाए ।
अन्य प्राणियों और
प्रकृति से सीख लेकर
प्राकृतिक जीना सीखा जाए ।
इस छोटे से प्यारे से
हृदय को –
हृदय विदारक होने से
बचाया जाए ।
— निशा गुप्ता, तिनसुकिया, असम