कमरे की सिलिंग
बरसात के कारण
घर की छत बेहाल थी
कमरे की सिलिंग
सीलन से भरी थी।
बीमारी के कारण
सात दिन मैं
बिस्तर पे पड़ी थी ।
नींद उड़ चुकी थी
पड़े-पड़े पढ़ने के बाद
थकी हुई आंखों को
आराम देने के लिए
मैं छत को निहारती ।
उस समय वह छत
मेरे लिए महा पुराण थी ।
चारों तरफ बदलों के गुब्बारे
पक्षियों की पंक्ति ,
विशाल वृक्षों का समूह
चींटियों सी घनी बस्ती ,
कूड़े करकट का ढेर
भाषण देते नेता
भीड़ की तालियाँ
रेल का काला धुँआ
अंगीठी का मिश्रित ,
कहीं टिमटिमाते तारे
कहीं गर्म किरणे
तो कहीं चांद की शीतलता
मुस्कुराती छवि ,
काले धन का बाजार
तो कहीं यश की लिप्सा ।
विशाल समुद्र में
डूबती तैरती मछलियां
बदसूरत सा राक्षस
और न जाने क्या क्या
उस सीलन भरी भीगी छत ने दिखा दिया
अंत में आंखों को
सपनों में सुला दिया ।
— निशा गुप्ता, तिनसुकिया, असम