जहाँ पे दर्द ने जोड़े नहीं कभी रिश्ते
कितना ग़मगीन ये आलम दिखाई देता है
हर जगह दर्द का मौसम दिखाई देता है
दिल को आदत सी हो गई है ख़लिश की जैसे
अब तो हर ख़ार भी मरहम दिखाई देता है
तमाम रात रो रहा था चाँद भी तन्हा
ज़मीं का पैरहन ये नम दिखाई देता है
जहाँ पे दर्द ने जोड़े नहीं कभी रिश्ते
वहां का जश्न भी मातम दिखाई देता है
ग़मों की दास्ताँ किसको सुनाता मैं नदीश
न हमनवां है न हमदम दिखाई देता है
© लोकेश नदीश