सामाजिक

लेख : राष्ट्र बोध

कभी लोग पूछने लगते हैं कि यह राष्ट्र बोध क्या है ? स्वराष्ट्र के उत्थान एंव उसकी सुरक्षा के प्रति प्रत्येक नागरिक की कर्तव्य परायणता तथा आवश्यकता अनुसार अपने प्राणों को न्यौछावर कर देने तक उद्धत रहने की भावना ही राष्ट्र- बोध कहलाती ।राष्ट्र की उन्नति तब तक संभव नहीं है जब तक उसकी नीतियों, योजनाओं को चलाने वाले सुयोग्य, कर्तव्यनिष्ठ ,निर्लोभी तथा सच्चे देश भक्त न हो । इसके विपरीत तो जनशक्ति और धन का नाश दिखाई देता है ।
1947 में देश को आजाद करवाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों में राष्ट्र – बोध की भावना भरपूर थी । उन्हें देश हित के आगे अपना हित फीका लगता था । देश के लिए अपने प्राणों की होली खेलना उनके लिए सहज था ।
अपने देश के प्रति आदर- सम्मान की भावना रखना प्रत्येक नागरिक का परम धर्म है । जिस देश की पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के तले रहकर हमको जीवन मिला है। जिस मातृभूमि ने हमारी सुख- सुविधा हेतु अनेक पदार्थ दिए हैं उसके प्रति कृतज्ञ होना हमारा नैतिक कर्तव्य है ।
राष्ट्र – बोध की भावना सुचरित्रता से जुड़ी हुई है । पर हमारा नैतिक स्तर काफी गिर चुका है, जिसके परिणाम स्वरूप आज देश के हर कोने से प्रतिदिन बलात्कार, भ्रष्टाचार, रिश्वत कांड, जातिवाद, भाई-भतीजावाद आदि की घटनाएं पढ़ने को मिलती हैं । देश विदेशों में जमा काला धन राष्ट्र- बोध के विरुद्ध है और यह मंहगाई का एक मुख्य कारण भी है ।
राष्ट्र बोध को जगाने की भावना का उत्तरदायित्व शासन पर नहीं डाला जा सकता है। स्वामी विवेकानंद का कथन है कि “संसार की सारी शक्तियां हमारे अंदर निहित है, उनको जाग्रत करने की आवश्यकता है, जिसका दायित्व हमारा अपना है । ”
भ्रष्टाचार का उद्गम चरित्र के अभाव में होता है प्रत्येक सभ्य समाज की आधार शिला परिवार और शिक्षक होता है । चाणक्य को अपने शिक्षक होने पर गर्व था । उन्हें शिक्षक में निहित शक्ति का आभास था इसलिए वे राजा से भयभीत नहीं हुआ ।उन्होंने तक्षशिला के राजी को उस समय चुनौती दे डाली जब आंभी ने हमलावर का साथ देने का निर्णय लिया था । उन्होंने मगध सम्राट धनानंद द्वारा किए गए अपने अपमान के उत्तर में कहा था ” शिक्षक भिक्षुक नहीं सृजनकर्ता होता है वह सम्राट बनने की क्षमता भी रखता है । ”
स्वामी ने कहा था -” तुम्हें अंदर से बाहर की तरफ विकसित होना है । कोई तुम्हें पढ़ा नहीं सकता, कोई तुम्हें आध्यात्मिक नहीं बना सकता । तुम्हारी आत्मा के अलावा कोई गुरु नहीं है । ”
हमारे शास्त्रों ने हमें शिक्षा दी है कि धर्म पूर्वक जीवन यापन करो, धर्म पूर्वक कमाओ, अपनी कामनाओं को धर्म से बाँधों । ऐसा करने से मोक्ष स्वत: ही प्राप्त होगा । अत: आज देशवासियों में राष्ट्र – बोध को जगाना परम आवश्यक है अन्यथा भारत कभी जगत गुरु कहलाने योग्य न हो सकेगा ।
राष्ट्र की जय चेतना का
गान वंदे मातरम ।
राष्ट्र भक्ति प्रेरणा का
गान वंदे मातरम् ।

निशा गुप्ता
तिनसुकिया, असम

*डॉ. निशा नंदिनी भारतीय

13 सितंबर 1962 को रामपुर उत्तर प्रदेश जन्मी,डॉ.निशा गुप्ता (साहित्यिक नाम डॉ.निशा नंदिनी भारतीय)वरिष्ठ साहित्यकार हैं। माता-पिता स्वर्गीय बैजनाथ गुप्ता व राधा देवी गुप्ता। पति श्री लक्ष्मी प्रसाद गुप्ता। बेटा रोचक गुप्ता और जुड़वा बेटियां रुमिता गुप्ता, रुहिता गुप्ता हैं। आपने हिन्दी,सामाजशास्त्र,दर्शन शास्त्र तीन विषयों में स्नाकोत्तर तथा बी.एड के उपरांत संत कबीर पर शोधकार्य किया। आप 38 वर्षों से तिनसुकिया असम में समाज सेवा में कार्यरत हैं। असमिया भाषा के उत्तरोत्तर विकास के साथ-साथ आपने हिन्दी को भी प्रतिष्ठित किया। असमिया संस्कृति और असमिया भाषा से आपका गहरा लगाव है, वैसे तो आप लगभग पांच दर्जन पुस्तकों की प्रणेता हैं...लेकिन असम की संस्कृति पर लिखी दो पुस्तकें उन्हें बहुत प्रिय है। "भारत का गौरव असम" और "असम की गौरवमयी संस्कृति" 15 वर्ष की आयु से लेखन कार्य में लगी हैं। काव्य संग्रह,निबंध संग्रह,कहानी संग्रह, जीवनी संग्रह,बाल साहित्य,यात्रा वृत्तांत,उपन्यास आदि सभी विधाओं में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मुक्त-हृदय (बाल काव्य संग्रह) नया आकाश (लघुकथा संग्रह) दो पुस्तकों का संपादन भी किया है। लेखन के साथ-साथ नाटक मंचन, आलेखन कला, चित्रकला तथा हस्तशिल्प आदि में भी आपकी रुचि है। 30 वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों व कॉलेज में अध्यापन कार्य किया है। वर्तमान में सलाहकार व काउंसलर है। देश-विदेश की लगभग छह दर्जन से अधिक प्रसिद्ध पत्र- पत्रिकाओं में लेख,कहानियाँ, कविताएं व निबंध आदि प्रकाशित हो चुके हैं। रामपुर उत्तर प्रदेश, डिब्रूगढ़ असम व दिल्ली आकाशवाणी से परिचर्चा कविता पाठ व वार्तालाप नाटक आदि का प्रसारण हो चुका है। दिल्ली दूरदर्शन से साहित्यिक साक्षात्कार।आप 13 देशों की साहित्यिक यात्रा कर चुकी हैं। संत गाडगे बाबा अमरावती विश्व विद्यालय के(प्रथम वर्ष) में अनिवार्य हिन्दी के लिए स्वीकृत पाठ्य पुस्तक "गुंजन" में "प्रयत्न" नामक कविता संकलित की गई है। "शिशु गीत" पुस्तक का तिनसुकिया, असम के विभिन्न विद्यालयों में पठन-पाठन हो रहा है। बाल उपन्यास-"जादूगरनी हलकारा" का असमिया में अनुवाद हो चुका है। "स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्व विद्यालय नांदेड़" में (बी.कॉम, बी.ए,बी.एस.सी (द्वितीय वर्ष) स्वीकृत पुस्तक "गद्य तरंग" में "वीरांगना कनकलता बरुआ" का जीवनी कृत लेख संकलित किया गया है। अपने 2020 में सबसे अधिक 860 सामाजिक कविताएं लिखने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। जिसके लिए प्रकृति फाउंडेशन द्वारा सम्मानित किया गया। 2021 में पॉलीथिन से गमले बनाकर पौधे लगाने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। 2022 सबसे लम्बी कविता "देखो सूरज खड़ा हुआ" इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। वर्तमान में आप "इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल न्यास" की मार्ग दर्शक, "शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास" की कार्यकर्ता, विवेकानंद केंद्र कन्या कुमारी की कार्यकर्ता, अहिंसा यात्रा की सूत्रधार, हार्ट केयर सोसायटी की सदस्य, नमो मंत्र फाउंडेशन की असम प्रदेश की कनवेनर, रामायण रिसर्च काउंसिल की राष्ट्रीय संयोजक हैं। आपको "मानव संसाधन मंत्रालय" की ओर से "माननीय शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी जी" द्वारा शिक्षण के क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। विक्रमशिला विश्व विद्यालय द्वारा "विद्या वाचस्पति" की उपाधि से सम्मानित किया गया। वैश्विक साहित्यिक व सांस्कृतिक महोत्सव इंडोनेशिया व मलेशिया में छत्तीसगढ़ द्वारा- साहित्य वैभव सम्मान, थाईलैंड के क्राबी महोत्सव में साहित्य वैभव सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन असम द्वारा रजत जयंती के अवसर पर साहित्यकार सम्मान,भारत सरकार आकाशवाणी सर्वभाषा कवि सम्मेलन में मध्य प्रदेश द्वारा साहित्यकार सम्मान प्राप्त हुआ तथा वल्ड बुक रिकार्ड में दर्ज किया गया। बाल्यकाल से ही आपकी साहित्य में विशेष रुचि रही है...उसी के परिणाम स्वरूप आज देश विदेश के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उन्हें पढ़ा जा सकता है...इसके साथ ही देश विदेश के लगभग पांच दर्जन सम्मानों से सम्मानित हैं। आपके जीवन का उद्देश्य सकारात्मक सोच द्वारा सच्चे हृदय से अपने देश की सेवा करना और कफन के रूप में तिरंगा प्राप्त करना है। वर्तमान पता/ स्थाई पता-------- निशा नंदिनी भारतीय आर.के.विला बाँसबाड़ी, हिजीगुड़ी, गली- ज्ञानपीठ स्कूल तिनसुकिया, असम 786192 [email protected]