हास्य व्यंग्य

वाह री जन्नत !!

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आजकल तीनों वक़्त सुबह दोपहर शाम हर वक़्त बस एक ही नाम, आह तलाक ,उई तलाक, वाह तलाक; मतलब हाल ये हो गया है कि लगता है कि हम किसी सभ्य सोसाइटी में नहीं वल्कि तलाकों की सब्जी मंडी में बैठे है और फेरी वाले चिल्ला रहे है, तलाक ले लो तलाक ।
कई बार तो ऐसा लगता है कि रातों रात किसी ने हमें सऊदी अरब में तो नहीं फेक दिया की सुबह होते ही बुरका उरका ढूँढना पड़े । तलाक न हो गया सरदर्दी हो गयी । टीवी खोलो तो तलाक, फेसबुक खोलो तो तलाक, व्हात्सप्प खोलो तो तलाक ।
अभी हम ये सोच ही रहे थे की हमारे मुरारी भैया आ धमके और आते ही पहला सवाल दाग दिया । जे का बबाल है तीन तलाक का । हमने बताया तीन तलाक मतलब मर्दों की आजादी और औरतों की गुलामी ।
मुरारी भैया भी कहने लगे की बात तो सही है तुम्हारी, अजीब हाल है कि जब तक मन भरे बीबी को रखो और जिस दिन मन भर जाये तीन बार तलाक तलाक तलाक बोलो, दस रूपए देके रिक्शे में बिठाओ और काम खत्म ।
भैया बोले की उन्हें तो लग रहा है कि जिनकी बेटियां आराम से ज़िन्दगी गुजार रही हैं, या तो मोर्चा लेने में सबसे आगे वे ही बहादुर डटे पड़े हैं टीवी से लेकर अखबार तक और या फिर वे हैं जिनकी खुद की बेटी तो कमजोर घर में है लेकिन पड़ोसी की बेटी का सुख जिनसे देखा नहीं जा रहा । मुरारी भैया तो इतना कहके चलते बने ,और हम ये सोचते रह गए की तलाक का हौब्बा ऐसा दिमाग में घुसा है कि कम से कम दिन में दो तीन बार ये ख्याल आ ही जाता है कि पतिदेव उधर से तैश में आएं और तलाक तलाक तलाक कह के रिक्शे में न बिठा दे लेकिन तुरंत ही याद आ जाता है कि हमने मेहर भर के शादी थोड़े नहीं की है की भाई करार खत्म ये लो अपने पैसे और चलती बनो ।
चलो हिन्दुओं में संस्कार तो हैं । यहाँ कम से कम सौदा तो नहीं होता । मुझे तो लगता है कि कुछ दिनों बाद कहीं मुस्लिम शादी बाजार में ऑन लाइन तलाक और निकाह की डिलीवरी न होने लगे की भाई फ्लिपकार्ड पर फोटो पसंद की पेमेंट भरा और माल की डिलीवरी घर पे ।
अच्छा है ऑनलाइन शॉपिंग वाले एक्सचेंज ऑफर नहीं रखते, नहीं तो मारे जाते की लो भाई हमारे पैसे वापस करो, हमे तुम्हारा माल पसंद नहीं आया ।

वैसे भी अभी कुछ ही दिन पहले मैडम महबूबा ने कहा था कि भारत में हम सुरक्षित हैं। सारा माजरा अब समझ में आ रहा है, कि असल बात क्या है सबको अपनी अपनी घर गृहस्थी से लगाव होता है, और सौत किसे अच्छी लगती है ।
कई बार तो ऐसा लगता है कि टीवी पे बैठ के जो बड़ी बड़ी दाढ़ी सहला सहला के तलाक के जाएज होने की बात पर अड़े रहते हैं कहीं घर पहुँचने से पहले ही उन्हें उनकी बेटी रस्ते में न मिल गयी हो, और कहे अब्बू अब संभलो आ गयी तुम्हारी बेटी मैहर लेके घर वापस। और मौलवी साहब उल्टा चैनल वालों के दफ्तर में राकेट की रफ्तार से धमकते हों, कि साहब जो मेरी बयान बाजी है उसे एडिट कर के दिखाइए ।
जो भी हो मुस्लिम मर्दों को देख कर एकाएक ये ख्याल आता है कि ये तीन तलाक को अपनी मां के लिए जायज ठहरा रहे हैं, बहन के लिए या आगे आने वाली अपनी ही पीढ़ी की बेटियों के लिए । सोचो, सोचो, सोचने और हँसने दोनों ही की बात है ।