लघुकथा

इस्पात के टुकडे

“शिवम, शालिनी काम ही क्या करती है ? थोडा बहुत काम कर कमरे में आराम फरमाती है, बडे बाप की होगी अपने घर में, इस घर में रहना है तो बडी बहू के साथ रसोई सँभाले, नही तो तुम दोनों अपना इंतजाम कहीं और कर लो।”

ससुर जी पति शिवम पर चिल्ला रहे थे, शालिनी तीन महीने से गर्भवती थी, डाक्टर ने पूरी तरह से आराम करने की हिदायत दी थी, फिर भी वह तबियत को संभालते हुए रसोई में हाथ बटाती थी, कमरे से निकलते हुए, दरवाजे की ओट में खडी जिठानी को कनखियों से देख शालिनी बोली, “पापाजी आप सारा दिन आफिस में रहते हो फिर सारी खबरें कौन देता है? और जो आपको भडकाते हैं मेरे खिलाफ, वो दरवाजे के पीछे से तमाशा देखते हैं ।”

सुनकर आगबबूला हुई जिठानी ने बाहर निकल ससुर और शिवम के सामने शालिनी पर हाथ उठाया लेकिन शालिनी ने अपनी सीमा से बाहर जाती जिठानी का हाथ पकडा और अचंभित हो खामोश शिवम को पिता के पास बैठा देख, पति पत्नी के प्यार भरे रिश्ते को इस्पात के टुकडे की तरह बिखरते देख रही थी ……..
संयोगिता शर्मा

संयोगिता शर्मा

जन्म स्थान- अलीगढ (उत्तर प्रदेश) शिक्षा- राजस्थान में(हिन्दी साहित्य में एम .ए) वर्तमान में इलाहाबाद में निवास रूचि- नये और पुराने गाने सुनना, साहित्यिक कथाएं पढना और साहित्यिक शहर इलाहाबाद में रहते हुए लेखन की शुरुआत करना।