गीतिका/ग़ज़ल

जुर्म तेरी इंतिहा बाकी अग़र है…


जुर्म तेरी इंतिहा बाकी अगर है।
ये ज़िगर तैयार सारी उम्र भर है॥

ले लिया हँसकर दिया है जिसने जितना।
दर्द को सहने का आदी ये ज़िगर है॥

तुम चलो जिस राह पर मरज़ी तुम्हारी।
प्यार की बस प्यार की अपनी डग़र है॥

ये कहाँ मुमकिन हमें सम्मान दे वो।
अपनो की तो सिर्फ दौलत पर नज़र है॥

लाख दुनियाँ से छुपाओ जुर्म लेकिन।
उस खुदा को जर्रे जर्रे की ख़बर है॥

कौन कहता है कि मरते है सिपाही।
देश के जाँबाज तो रहते अमर है॥

गीत ग़ज़ले गुनग़ुना कर चल रहा हूँ।
जानता हूँ दर्द का लम्बा सफ़र है।

सतीश बंसल
१८-१०-२०१६

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.