जुर्म तेरी इंतिहा बाकी अग़र है…
जुर्म तेरी इंतिहा बाकी अगर है।
ये ज़िगर तैयार सारी उम्र भर है॥
ले लिया हँसकर दिया है जिसने जितना।
दर्द को सहने का आदी ये ज़िगर है॥
तुम चलो जिस राह पर मरज़ी तुम्हारी।
प्यार की बस प्यार की अपनी डग़र है॥
ये कहाँ मुमकिन हमें सम्मान दे वो।
अपनो की तो सिर्फ दौलत पर नज़र है॥
लाख दुनियाँ से छुपाओ जुर्म लेकिन।
उस खुदा को जर्रे जर्रे की ख़बर है॥
कौन कहता है कि मरते है सिपाही।
देश के जाँबाज तो रहते अमर है॥
गीत ग़ज़ले गुनग़ुना कर चल रहा हूँ।
जानता हूँ दर्द का लम्बा सफ़र है।
सतीश बंसल
१८-१०-२०१६