पूनम का चाँद
बैठी थी मैं उदास एकांत में
छत के कोने में छिपकर,
देख लिया शरद के चाँद ने ।
खेलने लगा लुका छिपी
मेरे अंग-प्रत्यंग से ,
कर दिया मेरी- उदासी को उड़न छू ।
नहला कर अपनी चांदनी से ,
कर दिया रोमांचित ।
कहने लगा –
मेरे रहते यह उदासी कैसी ?
हैं मेरे झोले में सिर्फ खुशियाँ
जग को उत्साहित कर ,
करता हूँ सबको आनंदित ।
आओ कुछ क्षण-
रूठना भूल कर इस चांदी सी रात का आनंद ले ।
तुम जी भर निहारो मुझे
मैं दूँ जी भर प्यार तुम्हें ।
इन जुगनुओं से टिमटिमाते
तारों को देखो –
नहीं मालूम, कौन सा पल आखिरी है
पर हर क्षण खुशी से
जगमगाते हैं ।
आज तो रात है अनोखी
करूगां मैं अमृत की वर्षा
परहित ही मेरा जीवन है ।
करके चांद से बातें मीठी मीठी ,
आँखों में खुशी झलक आई ।
भूल कर गम की दुनिया,
परियों के देश सैर कर आई ।
— निशा गुप्ता, तिनसुकिया, असम