विरहन के अहसास
सात जनम तक साथ निभाने का वादा क्यूँ तोड गये।
जीवन के अन्जान सफ़र में साथ भला क्यूँ छोड गये॥
भूल गये क्यूँ वचन दिये जो अग्नि के सम्मुख तुमने।
अपने ही दिल की धडकन को दिया भला क्यूँ दुख तुमने॥
जन्मी जन्मी के नाते को पल भर में क्यूँ तोड गये…
जीवन के अन्जान सफ़र में साथ भला क्यूँ छोड गये…
तुम बिन दिन भी अंधियारे है सूरज भी तम बाँट रहा।
तुम बिन जीवन का हर लम्हा एक नया ग़म बाँट रहा॥
आती जाती इन साँसों का ग़म से नाता जोड गये…
जीवन के अन्जान सफ़र में साथ भला क्यूँ छोड गये…
तोड गये क्यूँ जीवन पथ पर साथ निभाने के वादे।
सात जनम तक प्यार से मेरी माँग सजाने के वादे॥
हाथ छुडाकर अपना दर्दो गम से नाता जोड गये…
जीवन का ये सफ़र कठिन है कैसे कदम बढाउँगी।
संग मुझे भी लेकर जाते तुम बिन जी नही पाउँगी॥
जीवन के अनजान सफर को देकर कैसा मोड गये…
जीवन के अन्जान सफ़र में साथ भला क्यूँ छोड गये…
— सतीश बंसल