तम भगाएं
दियों की रोशनी में दिवाली मनाएं,
मन के अंधेरे को दूर भगाएं।
यूँ तो दिवाली कई बार आई,
मगर तम जहां था वहीं पर खड़ा है।
चलो मिलकर इस तम को भगाएं ,
मन के उजाले से धरती महकायें।
है नहीं यह पर्व सिर्फ एक दिन का,
हर दिन हृदय में दिवाली मनाएं।
भूल कर ईर्ष्या,द्वेष,बैर भाव को,
ऊँचनीच सभी को,हम गले लगाएं।
चलो मिलकर इस तम को भगाएं,
मन के उजाले से धरती महकायें।
होगा तभी सार्थक पर्व दिवाली का,
बेसहारा, अनाथ को गले लगाएं।
श्री राम की इस पुण्य भूमि पर ,
हम पुनः राम राज्य लेकर आएं।
चलो मिलकर इस तम को भगाएं,
मन के उजाले से धरती महकाये।
— निशा गुप्ता, तिनसुकिया, असम