हास्य व्यंग्य

बेचारी जनता और सत्ता पक्ष की छींक

नेतानामा – 1
वे एक कद्दावर नेता थे I समाज में उनका बहुत सम्मान था I उनके संबंध में अनेक किस्से प्रचलित थे –उनकी ईमानदारी के,उनकी सत्यवादिता के, उनके त्याग के I वे एक जीवित दंतकथा थे- नीति उनकी चेरी थी, झूठ उनकी पूंजी और पल-पल परिवर्तनीय उनका सिद्धान्त सुविधानुसार नई-नई व्याख्या गढ़ता था I भाषण कला मे परम पारंगत नेताजी जब मंच से भाषण देते तो लगता जैसे अखिल ब्रह्मांड में वे ईमान के एकमात्र ध्वजवाहक और नैतिकता के इकलौते प्रहरी हैं I उनके शब्द राष्ट्रीयता और देशभक्ति के रंग में सराबोर होते थे I उनकी अलंकृत हिंदी और सुदर्शन चेहरे से लोग अभिभूत-चमत्कृत थे I जनसेवा,मेहनतकश,समतामूलक समाज आदि आकर्षक शब्दों से लबरेज उनके वक्तृत्व का जनता पर जादुई असर होता I जनता उनका जयजयकार करते थकती नहीं थी I बेचारी जनता, निरीह, असहाय और बेबस जनता I उसे मालूम नहीं कि चमकनेवाली सभी वस्तुएं सोना नहीं होतीं I भारत की धैर्यवान जनता जिसमें कभी-कभी उबाल आता है I जनता,जिसका भाग्य भारतीय नारियों की तरह किसी न किसी दल रूपी पुरुष के साथ बँधा है I जनता, जिसने आजतक केवल जयजयकार ही किया है-कभी इस दल का,कभी उस दल का I जनता,जैसे दुधारू मूक गाय जिसका बलवर्धक पौष्टिक दूध पी-पीकर नेतागण ताकतवर बनते हैं I जनता, जिसे हनुमान की भाँति अपनी शक्ति का एहसास नहीं है I
खादी का कुर्ता,फटी धोती और गांधीवादी चप्पल नेताजी का पहनावा था I पाँच दशकों की अपनी कुर्ताफाड़ राजनीति में उन्होंने तीन दर्जन बार दल बदले थे, इसीलिए उन्हें सतत प्रगतिशील कहा जाता था I जब उनका सभी दलों से मोहभंग हो गया तो उन्होंने एक अलग अपनी पार्टी ही बना ली जिसके वे अध्यक्ष,प्रवक्ता,कोषाध्यक्ष और सदस्य थे-पीर,बावर्ची,भिश्ती,खर I उन्हें चर्चा में बने रहने की कलाबाजी मालूम थी-पत्रकारों की पथभ्रमित बिरादरी में उनके कुछ खास चेले थे जो उनके मल-मूत्र त्याग की आम खबरों को खास बनाकर दैनिक पत्रों के मुखपृष्ठों पर शीर्ष पंक्तियों में प्रकाशित करते थे I
नेताजी शब्दों के खेल में परम दक्ष थे , सच कहा जाए तो राजनीति में सफलता का एकमात्र कारण उनका शब्दों के खेल में पारंगत होना था I वे घुमाफिराकर, तोड़-मड़ोरकर शब्दों का ऐसा घटाटोप बुन देते थे कि उनका भाषण पारलौकिक लगने लगता – सत्य और असत्य से परे I विभिन्न दलोँ के नेतागण अपनी-अपनी सुविधा और दलगत नीतियों के अनुकूल उनके भाषणों में कोई न कोई गूढ़ार्थ खोज ही लेते थे – मगजमारी कर उनके भाषण रूपी समुद्र से कोई न कोई मोती तलाश लेते थे I नेताजी किसी ज्वलंत समस्या पर बेबाक टिप्पणी नहीं करते थे बल्कि उसे दार्शनिक रूप दे देते थे I सामयिक समस्याओं का निदान वे इतिहास में खोजते थे और ऐतिहासिक विमर्श को दार्शनिकता का जामा पहना देते थे I नेताजी अब इस दुनिया में नहीं हैं पर उस परिवार की तीसरी पीढ़ी उनकी परंपरा को आगे बढ़ा रही है I वे स्वर्ग में भी खुश हो रहे होंगे कि शब्दों की यह जादुई परंपरा ( कुछ लोग इसे राजनीति की लंपट परंपरा भी कहते हैं) आजकल खूब पल्लवित-पुष्पित हो रही है I
नेतानमा – 2
कई दशक तक सत्ता में रहकर सर्वोदय पार्टी के नेताओं ने अपनी सुविधा के अनुसार संविधान की व्याख्या करना सीख लिया था I इस पार्टी ने लम्पटीय राजनीति अथवा राजनैतिक लम्पटता की अभिनव परंपरा स्थापित की थी और लफंगई को इतना गरिमामंडित कर दिया था कि विपक्षी दल भी उस परंपरा का अनुसरण करने को बाध्य हो गए थे I सर्वोदय पार्टी के प्रवक्ता शब्दों की जादूगरी में परम पारंगत थे I नेतागण अपना सांवैधानिक दायित्व समझकर घपले – घोटाले को अंजाम देते और उस घपले को अलंकृत भाषा और भावपूर्ण शब्दावली में राष्ट्र हित में उठाए गए क्रन्तिकारी कदम सिद्ध कर देते – विपक्ष ठगा -सा देखता रह जाता I इस दल में चाटुकारिता की स्वस्थ परंपरा थी और चरणामृत पान का दिव्य विधान I हर छोटा नेता बड़े नेता के चरणामृत का पान करता एवं अगले चुनाव में टिकट प्राप्त करने के विकट खेल में शामिल हो जाता I नेतागण परिवारवाद को भरपूर खाद – पानी देते और देहवाद के प्रति अपना अखंड समर्पण व्यक्त करते I नेत्रियों के लिए वस्त्रविहीनतावाद में निष्ठा अनिवार्य था I नेताओं की चाटूक्तियों को सुनकर राजतंत्र का भ्रम होता I सचमुच यह लोकतंत्र का ऐसा तलाकशुदा संस्करण था मानों तंत्र का लोक से तलाक हो गया हो I
कई दशकों के बाद जनता में उबाल आया I चुनाव में जनता ने सर्वोदय पार्टी के महारथियों को धराशायी कर दिया I वटवृक्ष सरीखे नेताओं को भी अपनी जमानत गंवानी पड़ी I सभी बडबोले नेता चुनावी समर में खेत रहे I पहली बार सर्वोदय पार्टी के नेता विपक्ष में बैठने को मजबूर हुए I मेहनतकश पार्टी सत्ता में आई I वर्षों की तपस्या और एकनिष्ठ साधना से मलाई चखने का स्वर्णिम अवसर एवं स्वर्गिक सुख उपलब्ध हुआ था, परन्तु सत्तानुरागी सर्वोदय पार्टी के नेताओं के कारण वे हमेशा भयभीत रहते थे कि कहीं कुर्सी न छिन जाए I यद्यपि मेहनतकश पार्टी के नेतागण भी जोड़ – तोड़ और तिकड़मबाजी में माहिर हो चुके थे, फिर भी सर्वोदयी नेताओं के ‘अफवाह उड़ाऊ अभियान’ के सामने वे कमजोर पड जाते I सत्ता पक्ष का कोई नेता छींक देता तो सर्वोदय पार्टी के नेतागण उसके कई निहितार्थ निकालने लगते I उस छींक के अनेक सामाजिक, दार्शनिक और राजनैतिक अर्थ निकाले जाते I कहते कि इस छींक से सम्पूर्ण विश्व में देश की छवि ख़राब हुई है I यह छींक देश की एकता के लिए खतरा है और जनता के स्वास्थ्य के लिए घातक भी I इस छींक के कारण पड़ोसी देशों से हमारा सम्बन्ध ख़राब हो जाएगा, यह छींक विपक्ष को नीचा दिखने की कोशिश है, छींक के द्वारा बाहर निकलनेवाली बैक्टीरिया से महामारी फैलने का खतरा है I इस प्रकार सत्ता पक्ष की छींक को राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बना दिया जाता I कई दिनों तक छींक अखबारों के मुखपृष्ठों पर रहती, समाचार चैनलों का ब्रेकिंग न्यूज़ बनती I कुछ दिनों तक देश – प्रदेश के अन्य सभी मुद्दे गौण हो जाते, राजकीय छींक ही राष्ट्रीय महत्व प्राप्त कर लेती I संसद से सड़क तक छींक केंद्रीय विषय बन जाती – छींक के पक्ष और विपक्ष में प्रमाणस्वरूप वेद –उपनिषदों के श्लोक प्रस्तुत किए जाते I जनता भी सत्ताधारी छींक की चर्चा में बढ़- चढ़कर भाग लेती – चटखारे ले-लेकर छींक की दशा – दिशा पर पांडित्यपूर्ण बहस करती Iगरीबी, बेकारी, विकासहीनता सब नेपथ्य में I
अनेक वर्षों की एकनिष्ठ साधना के बल पर सत्ता में आए मेहनतकश पार्टी के नेताओं की नींद उड़ चुकी थी I समझ नहीं पा रहे थे कि सर्वोदय पार्टी के चिर सत्तालोलुप बूढ़े नेताओं को किस समुद्र में डुबोएं I कितने सारे सपने थे, कितनी आकांक्षाएं थीं I सत्ता प्राप्ति ही जिनका इष्ट था, अपनी संततियों को तमाम सुख- सुविधाएँ, पद –पावर उपलब्ध कराना ही जिनका चरम लक्ष्य था, देह का भूगोल ही जिनका सबसे प्रिय पर्यटन स्थल था तथा दौलतवादी दर्शन ही भवसागर पार करने का गुरु मंत्र था, ऐसे प्रातःस्मरणीय परमोज्वल चरित्रवाले सत्ताधारी नेताओं की लहलहाती कामना को जैसे पाला मार गया हो I सदन कुरुक्षेत्र का मैदान बन चुका था जहाँ पक्ष- प्रतिपक्ष की सत्तालोलुपता का महाभारत चल रहा था I सत्ता– पक्ष ‘राजकोष उडाऊ अभियान’ में बाधा उपस्थित होने से नाराज था जबकि विपक्ष को इस बात की पीड़ा थी कि जिस राजकोष को कल तक हमलोग अपने पूज्य पिताश्री की संपत्ति समझकर दोहन – निगलन कर रहे थे उस कोष पर अब मेहनतकश पार्टी का कब्ज़ा कैसे और क्यों हो गया I
सर्वोदय पार्टी के बड़े नेता पानी और फलों का रस पी- पीकर गालियां दे रहे थे और छोटे नेता उन गलियों की कलात्मकता पर अंतहीन बहस कर रहे थे I वे प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर उन गालियों का भाषावैज्ञानिक और सौन्दर्यशास्त्रीय विश्लेषण करते I कहते कि हमारे माननीय नेताओं के वक्तव्यों को तोड़- मरोड़कर, सन्दर्भ से काटकर प्रस्तुत किया गया, उनका अभिप्राय वह नहीं था, जो समझा गया I कुछ छुटभैये नेतागण दो कदम और आगे बढ़कर उन गालियों को नौ रसों से युक्त महाकाव्यात्मक गाली सिद्ध कर देते I कुछ चरणदासी किस्म के नेतागण तो उन गालियों को समाजवादी गाली करार देते I एक बार सर्वोदय पार्टी के एक बड़े नेता ने भावावेश और अनुप्रासयुक्त हिंदी बोलने के मोह में कह दिया कि मेहनतकश पार्टी तो लुच्चों- लफंगों का अवैध, पदलोलुप और कुसंस्कारी गठजोड़ है I अब इस पर हंगामा तो होना ही था I इसे लेकर कई दिनों तक सदन को कार्यवाही बाधित रही I सप्ताहांत में सर्वोदय पार्टी के दांतपिसु बडबोले प्रवक्ता खबर बुभुक्षु पत्रकारों की चिरव्याकुल टोली के समक्ष अवतरित हुए और ‘लुच्चा लफंगा’ शब्द की दार्शनिक व्याख्या प्रस्तुत की I कहा कि प्रेसवाले ने इस शब्द को गलत ढंग से पेश किया है I वस्तुतः ‘लुच्चा’ शब्द का प्रयोग तो आत्मा के लिए किया गया था I ‘लुच्चापन’ तो परमात्मा के लिए आत्मा का निरंतर भटकाव है I
राहबर रहजन न बन जाए कहीं इस सोच में I
चुप खड़ा हूँ भूलकर रस्ते में मंजिल का पता II
-आरज़ू लखनवी

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें : 1.अरुणाचल का लोकजीवन (2003)-समीक्षा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य(2009)–राधा पब्लिकेशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 3.हिंदी सेवी संस्था कोश (2009)–स्वयं लेखक द्वारा प्रकाशित 4.राजभाषा विमर्श (2009)–नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय (2010)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा, विश्वभाषा (सं.2013)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत (2018, दूसरा संस्करण 2021)–हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ (2021)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली – 110002 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह-2020)–अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 17.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य(2021) अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य(2021)-मित्तल पब्लिकेशन, नई दिल्ली 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति(2021)-हंस प्रकाशन, नई दिल्ली मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected]