गज़ल
दिये आस के जगमगाने लगे हैं
हमें देख वो मुस्कुराने लगे हैं
बसे हैं दिल में जो धड़कन की तरह
उन्हें भी हम अब याद आने लगे हैं
शहर भर में मशहूर होने लगा हूँ
वो पास अपने मुझको बिठाने लगे हैं
नाम था कल हमारा उनकी ज़ुबां पर
ये सुनकर ही हम इतराने लगे हैं
चाँद से कह दो छुप जा घड़ी दो घड़ी तू
अपने रूख से वो पर्दा हटाने लगे हैं
बादलो साथ तुमको भी देना पड़ेगा
किस्सा-ए-हिज्र उनको सुनाने लगे हैं
महफिल में कईयों का दिल जल गया है
वो मेरी गज़ल गुनगुनाने लगे हैं
— भरत मल्होत्रा