राजनीति

उप्र में राहुल के मिशन को तगड़ा झटका

खाट सभा और रोड शो के बहाने उप्र में वापसी की राह तलाश रहे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को कांग्रेस नेता रीता बहुगुणा जोशी के भाजपा में शामिल हो जाने से तगड़ा झटका लगा है। कांग्रेस पीके की रणनीति के सहारे तथा दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को आगे करके उनके सहारे ब्राह्मण मतदाताओं को आकर्षित करने का प्रयास कर रही थी। लेकिन अब वह प्रयास धरा का धरा रह गया है। आज कांग्रेस के अंदर भी बेचैनी का माहौल पैदा हो गया है। दूसरे दलों के नेताओं का जिस प्रकार से भाजपा में आना जारी है तथा इस बात की प्रबल संभावना व्यक्त की जा रही है कि अभी आने वाले दिनों में कई और विकेट उखड़कर भाजपा की झोली में गिरने जा रहे हैं। ऐसे में उत्साहित भाजपा ने अब 265 प्लस की जगह अबकी बार आंकड़ा तीन सौ के पार का नारा भी भाजपा ने उछाल दिया है।

राजनैतिक गलियारे में व सोशल मीडिया में भी अब यह मजाक बनता जा रहा है कि अब जिस किसी को भी अपना राजनैतिक कैरियर सुधारना है तो वह पीएम मोदी और भाजपा की शरण में चला जाये। यह भी कहा जा रहा है कि भाजपा दूसरे दलों के कूड़े का डपिंग यार्ड बनता जा रहा है। जिस प्रकार से दूसरे दलों के बड़े नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं उससे मन में शंका उठना स्वाभाविक है कि क्या इन दलों के नेताओं के सहारे 2017 में भाजपा की नैया पार लग सकेगी। भाजपा के पास सभी जाति और धर्म के बड़े नेताओं की कमी थी वह यह कमी भी इन्हीं चेहरों के सहारे पूरा करना चाह रही है। भाजपा ने श्रीमती रीता बहुगुणा जोशी के सहारे जहां कांग्रेस के ब्राह्मण व पहाड़ी वोटबैंक के कार्ड को गहरा आघात पहुँचाया है, वहीं अब भाजपा इन मतदाताओं के बीच रीता के सहारे अपनी पैठ को मजबूत करने का अभियान चलाने जा रही हैं।

भाजपा में शामिल होते ही रीता बहुगुणा जोशी ने कांगे्रस व गांधी परिवार पर जोरदार हमले किये। उन्होंने कहा कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी में नेता बनने की कोई काबिलियत नहीं हैं और देश की जनता राहुल गांधी को स्वीकार नहीं कर पा रही है। रीता बहुगुणा जोशी को राहुल गांधी का खून की दलाली वाला बयान भी पसंद नहीं आया। इस बयान के बाद वह कांग्रेस में अपने आप को असहज महसूस कर रही थीं। हालांकि वास्तविकता यह है कि जब उत्तराखंड में जब उनके भाई विजय बहुगुणा ने अपने साथियों के साथ कांग्रेस छोड़ी वह तभी से कांग्रेस में हाशिये में चली गयी थी। अब श्रीमती रीता बहुगुणा जोशी को पीएम मोदी अच्छे व मजबूत नेता लगने लग गये हैं। साथ ही उनकी नजर में केंद्र सरकार अच्छा काम भी करने लग गयी है। वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजबब्बर ने कहा कि पूरे परिवार को पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिये क्योंकि इस परिवार का पुराना इतिहास ही अवसरवादिता का रहा है। उप्र प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने भी रीता पर हमला बोलते हुए कहा कि उनको अपनी लखनऊ की कैंट सीट जीतने का भरोसा नहीं था जिसके कारण ही उन्होंने अपनी सीट को बचाकर रखने के लिए भाजपा का दामन थाम लिया है। कांग्रेस की नजर में रीता बहुगुणा जोशी दगाबाज नेता बन गयी हैं। जब वे भाजपा में शामिल हुई तो राजधानी लखनऊ सहित प्रदेश के अधिकांश स्थानों पर नाराज कांग्रेसियों ने उनके खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया और पुतले भी फूंके।

मिशन-2017 के लिये भाजपा ने जो दांव चला है उसके सहारे अब सभी दल घिरते चले जा रहे हैं। कांग्रेस, सपा और बसपा के कई बड़े नेता जिस हनक और धमक के साथ भाजपा में शामिल हो रहे हैं उससे इन दलों में बैचेनी उठना स्वाभाविक है। पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की पुत्री रीता बहुगुणा जोशी ने प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए अपनी एक टीम गठित की थी जिसमें सैकड़ों सदस्य बन गये थे तथा उनके हजारों समर्थक बन गये थे। रीता के अब भाजपा में शामिल हो जाने के बाद यह सैकड़ों की संख्या में समर्थक भी भाजपा के लिए ही काम करने वाले हैं।

अभी तक सबसे ज्यादा बसपा के ही लोग भाजपा में शामिल हुए हैं। जिस दिन दिल्ली में रीता बहुगुणा जोशी भाजपा में शामिल हो रहीं थी, ठीक उसी दिन लखनऊ में भी एमएलसी और पूर्व मंत्री सहित दर्जनों नेता अपने समर्थकों सहित भाजपा में शामिल हूये। जिसमें गाजीपुर के निर्दलीय एमएलसी विशाल सिंह ‘चंचल’, पूर्व राज्यमंत्री विनोद तिवारी, पूर्व आईजी लालजी शुक्ल सहित कई लोगों ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। राजनैतिक गलियारों में संभावना व्यक्त की जा रही है कि अभी कई और बड़े नेता अपने हजारों समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल होने की संभावना तलाश रहे हैं।

रीता बहुगुणा जोशी के सहारे भाजपा ने एक तीर से तीन निशाने साधने का काम किया है। रीता को भाजपा में शामिल करके भाजपा ने कांग्रेस के ब्राह्मण कार्ड को बड़ा गहरा झटका दिया है। रीता के साथ अब भाजपा के पास पांच ब्राह्मण चेहरे हो गये हैं। जिसमें पूर्वांचल में शिव प्रताप शुक्ला, काशी और इलाहाबाद क्षेत्र में रीता जोशी, मध्यक्षेत्र में बृजेश पाठक, अवध में डा. दिनेश शर्मा और पश्चिम यूपी में डा. महेश शर्मा पर ब्राहमण वोटों को आकर्षित करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी हैं। आगामी 27 अक्टूबर को इटावा में बहुत बड़ी संकल्प सभा होने जा रही है, जिसमें पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के उपस्थित रहने की संभावना है।

अगर कांग्रेसी नेता रीता बहुगुणा जोशी पर अवसरवादिता का आरोप लगा रहे हैं तो यह गलत भी नहीं हैं। उनका राजनैतिक सफर 1991 से शुरू होता है जब वह सपा से सुल्तानपुर लोकसभा चुनाव लड़ीं और पराजित हुईं। इसके बाद 1995 से 2000 तक इलाहाबाद की मेयर रहीं। 2003 से अखिल भारतीय कांग्रेस की महिला अध्यक्ष रहीं। 2007 में इलाहाबाद से कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव हारीं। 2007 सें 12 तक पार्टी की प्रदेश इकाई अध्यक्ष रहीं। 2012 में लखनऊ कैंट से विधानसभा चुनाव जीती। अब रीता बहुगुणा जोशी की उनकी नयी राजनैतिक पारी उनको व भाजपा को कितनी सफलता दिलायेगी, यह तो 2017 में ही पता चलेगा।

फिलहाल यह तय हो गया है कि उत्तर प्रदेश में राहुल और पीके की जोड़ी जनता के बीच असरकारक नहीं हो पा रही है। उप्र में आम जनता ने राहुल गांधी का खून की दलाली वाला बयान स्वीकार नहीं किया है। खबरें यह भी है कि कई और नेता बगावत के लिए रास्ता तलाश रहे हैं।

— मृत्युंजय दीक्षित