दोहे
जिनके रहमो कर्म से, बसता घर परिवार ।
तुमको फिर वे ही बड़े, लगते क्यूं बेकार ।।
रोक टोक इनकी भली, नहीं बुरी फटकार ।
इनकी छाया में हमे, मिलते है संस्कार ।।
नहीं तुच्छ बूढे-बड़े, है समाज की शान ।
फिर भी इनका हो रहा, क्यूं इतना अपमान ।।
बेबस तन मन को लिये, सेहत से लाचार ।
दीन दशा इनकी बड़ी, सहते अत्याचार ।।
मूक निगाहे देखती, बनकर के लाचार ।
टूटी आशाएं सभी, उजड़ गया संसार ।।