उपन्यास अंश

नई चेतना भाग –२०

ईधर बीरपुर में लाला धनीराम का मजबूत ह्रदय भी अपने पुत्र अमर की जुदाई का गम सहते हुए कमजोर हो गया था । पल पल उन्हें अमर की कमी महसूस हो रही थी । ऊपर से सख्त दिखने वाले लाला धनीराम का ह्रदय अन्दर ही अन्दर कचोट रहा था । तनहाई में अपने आंसुओं को बहने की इजाजत देकर लालाजी ने ह्रदय का बोझ कुछ कम करने का रस्ता अख्तियार कर लीया था ।

सुशीलादेवी का तो और भी बुरा हाल था । उनकी इकलौती संतान इस कदर उनसे मुंह मोड़ लेगी उन्होंने सपने में भी इसकी कल्पना नहीं की थी । इस छोटे से परिवार में दुःख का पहाड़ टूट पड़ा था , कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी ।

‘ अमर को घर से निकले हुए चौबीस घंटे से भी अधिक का वक्त हो चला था । उससे पिछली रात भी उसने भोजन नहीं किया था । अब कहाँ होगा ? कैसा होगा ? उसने कुछ खाया पीया होगा कि नहीं । यह भी तो नहीं पता कि उसके पास पैसे हैं या नहीं ? कुछ लेकर भी तो नहीं गया ? अगर पैसे नहीं होंगे तो वह क्या करेगा ? जबसे गया है उसने फोन भी तो नहीं किया । क्या उसे हमारी याद नहीं आ रही ? ‘ तमाम तरह की बातें सोचते हुए सुशीलादेवी गमगीन बैठी हुयी थीं कि उनकी नौकरानी कमला ने कमरे में प्रवेश कर उनकी तन्द्रा भंग की ।

कमला सुशीलादेवी के चेहरे को देखते हुए धीरे से बोली ” मालकिन ! मैं आपका दुःख समझ सकती हूँ !  जब अपने ही जखम देते हैं तो पिर कुछ ज्यादा ही होता है । ऐसा ही है अब पता नहीं छोटे मालिक कहाँ होंगे ? कैसे होंगे ? लेकिन मेरे दिमाग में एक बात आ रही है । आप कहें तो मैं बताऊँ । ”

कहकर कमला सुशीलादेवी का चेहरा देखने लगी । कमला की बात सुनकर सुशीलादेवी की उत्सुकता बढ़ गयी थी । सोचने लगी ‘ शायद इसे अमर के बारे में कुछ पता हो वही बताना चाह रही होगी । सुन लेने में हर्ज ही क्या है ? हो सकता है कोई काम की ही बात हो । ‘ सो बोल पड़ीं ” बता कमली ! क्या बताना चाहती है ? ”

कमला ने इधर उधर देखते हुए धीमे स्वर में कहा ” मालकिन ! छोटे मालिक के जाने का दुःख तो हमें भी है । लेकिन यूँ ही हाथ पे हाथ धरे बैठे रहेंगे तो कैसे उनका पता चलेगा ? ”

” अरी ! अब पहेलियाँ क्यों बुझा रही है ? जो कहना चाहती है साफ़ साफ़ कहती क्यों नहीं ? ” सुशीलादेवी कमली के अनावश्यक देर करने से चिढ सी गयी थीं ।

” वही तो बता रही हूँ मालकिन ! मैंने पता किया है पड़ोस के गाँव में एक ओझा रहता है । नाम है बाबा धरनिदास । बड़े पहुंचे हुए बाबा है मालकिन ! बताते हैं दुर्गाजी तो उनसे साक्षात् बातें करती हैं । कई खोयी हुयी चीजें बाबाजी की किरपा से वापस मिली हैं । हमें कोशिश करने में हर्ज ही क्या है ? ” कमली ने एक ही सांस में बाबा धरनिदास का महिमामंडन बहुत बढ़िया तरीके से कर दिया था ।

कमली की बातें सुनकर सुशीलादेवी थोड़ी देर सोचती रहीं फिर कमली से बोली ” तुझे पूरा यकीन है बाबा कुछ कर पाएंगे इस बारे में  ? ”

” मालकिन ! आखिर कोशिश करने में बुराई ही क्या है ? क्या पता कुछ पता चल ही जाए ।” कमली ने उकसाया था ।

सुशीलादेवी अब उससे कुछ प्रभावित लग रही थी । कमली से बोलीं ” अच्छा जा ! जरा रमेश से कह दे गाडी निकाले । पड़ोस के गाँव जाना है । ”

कमली तुरंत ही बरामदे के बाहर बने एक छोटे से कमरे की तरफ दौड़ पड़ी  जिसमें ड्राईवर रमेश रहता था ।

थोड़ी देर बाद लालाजी की कार पड़ोस के गाँव की तरफ बढ़ी जा रही थी । रास्ता पूरी तरह कच्चा ही था । धूल की पतली नदी सी दिख रही राह पर ऊपर नीचे होकर गाड़ी हिचकोले खाती धीरे धीरे बढ़ी जा रही थी ।

गाँव काफी नजदीक ही था लेकिन इस रस्ते पर चलते हुए सुशीलादेवी को लग रहा था जैसे बहुत दूर चली आई हों ।

किसी तरह गाडी गाँव के मुहाने तक पहुँच गयी थी । गाँव में अन्दर गाड़ी लेकर जाना सम्भव नहीं था सो ड्राईवर ने गाड़ी वहीँ एक खेत में उतार दिया ।

कमली और सुशीलादेवी पैदल ही ओझा धरनिदास के ठिकाने की तरफ बढ़ने लगे । कुछ मिनटों में ही कमली के पीछे चलते हुए सुशीलादेवी एक घर के आगे जाकर रुक गयी ।   सुशीलादेवी को बाहर ही छोड़कर कमली घर में घुस गई  ।

कुछ देर के बाद कमली बाहर आई । उसके साथ ही एक अधेड़ आयु का व्यक्ति भी बाहर आया था । मोटी तोंद पर ऊपर सीने तक भगवा धोती लपेटे था । कहने की जरुरत नहीं कि उसके ऊपर वह कुछ भी नहीं पहने था । यह व्यक्ति ही बाबा धरनिदास था ।

शिष्टाचार वश सुशीलादेवी ने अपने दोनों हाथ जोड़ कर उनका अभिवादन किया । बाबा ने प्रत्युत्तर देते हुए आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ उठा दिया और उन्हें पीछे आने का ईशारा किया ।

सुशीलादेवी बाबा और कमली के पीछे चलते हुए बरामदे के बाद एक दालान और उसके बाद आँगन में पहुंचे । आँगन में कुछ लोग पहले से बैठे हुए थे । वहीँ एक कोने में दूुर्गाजी की एक छोटीसी प्रतिमा स्थापित की गयी थी । प्रतिमा के बगल में ही थोडा नीचे की तरफ एक आसन लगा हुआ था । उसी आसन पर जाकर बाबा धरनिदास विराजमान हो गए ।

सामने ही कुछ देहाती स्त्री पुरुष हाथ जोड़े बैठे हुए थे । इन्हीं लोगों के बीच बाबा के सहायक ने एक साफ़ चादर लाकर बीछा दिया और सुशीलादेवी को उस पर बैठने का आग्रह किया । पहले कमली और फिर सुशीलादेवी दुर्गाजी की प्रतिमा के आगे शीश झुका बाबा का अभिवादन कर  उस बिछे हुए चादर पर जाकर बैठ गयी दोनों ।

बाबा ने वहाँ बैठे सभी लोगों से एक स्वर में माताजी का जयकारा लगवाया और फिर पूजापाठ शुरू कर दी । लगभग दस मिनट तक पूजा करने के पश्चात् बाबा के सहायक ने लोगों को बताया ‘ बाबाजी अब पूरी तरह से माताजी के संपर्क में हैं अतः आप लोग जो भी पूछना चाहे आप यह समझ कर पूछना कि आप साक्षात् माता दुर्गाजी से बात कर रहे हैं । मर्यादा और सम्मान अत्यंत जरुरी है ।’

बाबा के सहायक ने कमली की ओर देखा । उसका इशारा समझ कर कमली ने सुशीलादेवी को आगे बढ़कर बाबा के सामने बिछे आसन पर बैठने को कहा ।
अपनी जगह से उठकर सुशीलादेवी ने पहले दुर्गाजी की प्रतिमा के सामने शीश नवाया और फिर बाबा के चरणस्पर्श कर उसके सामने बिछे आसन पर बैठ गयी ।
उनके आसन पर बैठते ही बाबा ने अपना हाथ सुशीला जी के सीर पर रखा और आँखें बंद किये हुुुए ही बोला ” बोल बेटा ! तुझे क्या कहना है ? ”

सुशीला जी ने नतमस्तक हो कहा ” बाबाजी ! मैं बहुत परेशान हूँ । हमारा इकलौता बेटा कल  ही घर छोड कर कहीं चला गया है । हमें नहीं पता वह कहां गया है । हम उसके लिए बहुत चिंतित हैं । आपकी बड़ी कृपा होगी अगर आप कुछ बता सकें और इस बारे में कुछ कर सकें । ” बोलते बोलते सुशीलादेवी का गला भर आया था ।

सुशिलाजी की पूरी बात सुन कर बाबा धरनिदास ने उनके सर से हाथ हटाकर एक निम्बू माताजी के चरणों में रखा और अगले ही पल वही निम्बू उठाकर सुशिलाजी के सर पर रखकर उसे एक तेज धार चाकू से काट दिया ।

दोनों हाथों से निम्बू के दोनों टुकड़ों को लोगों को दिखाते हुए बाबा ने वह निम्बू अपने समीप ही एक डब्बे में डाल दिया । लोग आश्चर्यचकित से उस निम्बू के कटे हुए टुकड़ों को देख रहे थे जिनसे खून जैसा लाल रस टपक रहा था । निम्बू से लाल खून सा निकलते देख उसे बाबा और माता का चमत्कार मानकर मौजूद लोगों ने उत्साह में आकर माँ के जयकारे लगाने शुरू कर दिए । बिच बिच में बाबा के भी जय कारे लगाए गए ।

लोगों को शांत रहने का निर्देश देते हुए बाबा ने एक दम कड़क आवाज में सुशिलाजी को लगभग डपटते हुए बोला ” झूठ क्यों बोल रही है ? तुझे नहीं पता वह कहाँ गया है ? ”

सुशीलादेवी निःशब्द हो बाबा का क्रियाकलाप देखती रहीं ।

थोडा शांत होते हुए बाबा धरणीदास बोल पड़ा ” सुन ! क्या नाम है तेरे लडके का ? ”

सुशिलाजी तुरंत घबराए स्वर में बोली ” अमर ! ”

बाबा ने बोलना जारी रखा ” अच्छा ! अमर ! …….अमर तेरे घर से दक्षिण दिशा में गया है और किसी बड़ी मुसीबत में है । मुझे वह बहुत परेशान और घायल दिख रहा है । तुम लोगों से वह बहुत नाराज है । वह अब कभी तुम्हारे पास वापस नहीं आयेगा । ”

बाबा की बात सुनकर सुशिलाजी तड़प उठीं । तुरंत ही बाबा के चरणों पर गीरकर गिडगिडा पड़ीं ” नहीं नहीं बाबाजी ! ऐसा न कहिये । कुछ कीजिये बाबाजी । चाहे जो करना पड़े मैं करुँगी । बस आप बताइए । हमें क्या करना है ? ”

सुशीलादेवी की बातें सुनकर बाबा की आँखों में एक विशेष चमक दिखाई पड़ी थी ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।