दोहा मुक्तक
जीवन यज्ञ प्रकाश हैं, यही तीज त्यौहार
भर देते खुशियां शहर, आप लिए व्यवहार
गाँव गिरांव सुदूर से, आशा लाए ठौर
मिलते जलते एक सम, धागा दीप कतार।।-1
कुशल क्षेम की चाहना, मिलकर पूछें लोग
मेवा मिश्री पाहुनी, नूतन वर्षा जोग
मिल जाते है एक संग, जाने कितने हाथ
भर जाए प्रकाश घर, लगता छप्पन भोग।।-2
पर्व प्रकाश प्रसन्नता, दीपावली अजोर
साफ़ सफाई स्वच्छता, करें पटाखे शोर
गले मिलें सब हीत मीत, भारत माँ के पूत
सीमा बीर सराहिए, उगता सूरज भोर।।-3
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी