गीत : आए हो घनश्याम हृदय तुम !
आए हो घनश्याम हृदय तुम, मधुरम मधुमय रूप लिए;
अभय किए वरदान दिए हो, अप्रतिम अभिनव भाव दिए !
धरा धाम से मुक्त किए मन, बाँह उछाले उर झाँके;
रहे देखते मम गतिविधि तुम, सहज संभाले नेह दिए !
डाँट दिए हो रोक दिए हो, आँखों आँखों मुसकाए ;
पल पल प्यार किए चलते हो, कल कल धुन रहते गाए !
कान्हा तुम जसुमति के बेटे, राधा के हो प्राण प्रिए;
ब्रज के कण कण रमते रहते, हर गोपी उर ध्यान दिए !
बात बात रस भर जाते हो, मन हर बने मनोहर रहते;
‘मधु’ प्राणों में आते रहते, मुरली की मृदु तान दिए !
— गोपाल बघेल ‘मधु’