गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अच्छी आदत जो है मेरी आदत रहे
जो लिखूं याद मुझको इबारत रहे

जान जो भी लुटाए वतन के लिए
है खुदा से दुआ वो सलामत रहे।

आज जो कुछ भी है साथ मेरे खुदा
बाद उसके न कुछ मुझको हाजत रहे

वक़्त ऐसा न देना खुदाया कभी,
हम सभी को समय से शिकायत रहे।

साथ उनका रहे बस यही आस है,
एक मुझ पर ही उनकी इनायत रहे।

नाम ऐसा ज़माने में “शुभदा” करे,
कल किसी बात पर ना नदामत रहे।

शुभदा बाजपेई