कविता

रावण

रावण बलशाली वो महाज्ञाणी था
बस जरा सा वो अभिमानी था ।
बल था असीम उसके अंदर
था वो ज्ञान का वृह्त समंदर ।
सूर्पनखा से था उसे प्यार बहुत
सह सका ना उसके सम्मान पे चोट ।
रघुवर को दंड देने को
छल से उठाया उसने शिया को ।
पर करता था नारी का सम्मान
सिया का किया नहीं कभी अपमान ।
मात सिया को हाथ लगाया नहीं
उनपे कभी जोर आजमाया नहीं ।
शिव का भक्त था असुर दशानन
शिव को लाने चला था अपने आंगन ।
पर गणपति मिल गए उसी पथ में
और विराजे भोले कष्ट हरने मरत में ।
था मातृ भक्त रावण प्रजा हितकारी
बस नाना ने थी उसकी मति मारी ।
गर्व से था जीता असुरपति
बस अहंकार ने हर ली उसकी सुमति ।
दुर्भाग्य था जो बिभीसन भाई मिला
ढहाया जिसने लंका का किला ।
राम संग रावण का खुब युद्ध हुआ
फिर पराक्रम से रावण मृत हुआ ।
सुन राम में थे जो गुण रावण में भी थे
रावण के गुण न राम में दिखे ।
कहता है रामायण कह गए तुलसी
‘मुकेश’ रावण की कथा अविरल थी ।।

मुकेश सिंह
सिलापथार (असम)
मो०- 9706838045

मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl