यारी अपनी निभ जाएगी
आज सुदामा आए हैं,
देख कृष्ण हर्षाए हैं,
गले मिले वे अपने मित्र से,
नैन नीर भर आए हैं.
रुक्मिणी जब तक पानी लाई,
आंसू से पग धो डाले,
देख मित्र की दीन दशा को,
कहा कृष्ण ने’ कुछ खा ले’.
कहे सुदामा, ‘खाना भूलो,
काम ज़रा-सा करना है,
मेरे नोट बदलवा दो बस,
लाइन में तुम्हें लगना है’.
कहे कृष्ण, ”तुम सुनो सुदामा,
यही काम बस मुश्किल है,
मेरे नोट भी पड़े यहीं पर,
बहुत दुःखी मेरा दिल है’.
‘कुछ दिन तक रुक जाओ प्यारे,
लाइन छोटी हो जाएगी,
तब तक चौसर खेलेंगे हम,
यारी अपनी निभ जाएगी’.
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