कविता : एसिड अटेक
झुलसा चेहरा,
धंसी आँखें,
“एसिड विक्टिम”…
है मेरी पहचान !
पलक बिछाये,
था सुनहरा कल,
अब शायद हूँ…
कुछ दिन की मेहमान ! !
कुंठित दानव,
था घात लगाये,
इन्कार की कीमत…
मिली तेजाब !
झुलसी मैं,
झुलसा परिवार,
पीड़ा सही सबने…
बेहिसाब ! !
बिनती मेरी,
बदलो कानून,
न हो कोई एसिड…
का शिकार !
गुनहगार को भी,
ऐसी ही सजा दो,
कि गुनाह करने से काँपे…
हर गुनहगार !
अंजु गुप्ता