दोहे
सजी धजी दुल्हन बनी, कर सोलह सिंगार |
रूप सुहाना यूँ लगे, जैसे चाँद हजार ||
हरे कांच की चूड़िया, पहन चली प्रिय संग |
नैनों में सपने सजे, मन में बसी उमंग ||
बिटियां तुम ससुराल में,रखना सबका मान |
आँखों में अांसू भरे, मैया देती ज्ञान ||
विदा हो चली लाडली, प्रिय से नाता जोड़ |
सोन चिरैया उड़ गई, पिंजर सूना छोड़ ||